Saturday 23 December 2017

मेरे बालाजी महाराजे

मेरे बालाजी महाराजे

महाकाय तुम परमवीर हे पवनपुत्र अविनाशी
परविद्या परिहार करो तुम जामवंत वनवासी

कपिसेना-नायक , रामदूत तुम , वज्रकाय बलशाली
हुई स्वर्ण नगर की ईंटे तेरे क्रोधरूप से काली

दैत्य विघातक मुद्रप्रदायक अंजनि के मारुति लाला
आगे तेरे कौन टिका प्रभु तू जग का रखवाला

सालासर से घूम बनारस पंचमुखी तुम स्वामी
मेहंदीपुर और चित्रकूट संकटमोचन की निशानी

हनुमानगढ़ी में सीढ़ी चढ़कर दर्शन पाया तेरा
बेट द्वारका दंडी मंदिर में तेरा ही बसेरा

यंत्रोद्धारक बालचंद्र हे महावीर अति भोले
गिरजाबंध में रूप माधुरी मन को मेरे मोहे

रुद्र रूप मे शिव अवतारी बालाजी महाराजे
नाम से तेरे भूत प्रेत भी थरथर करके कांपे

मै शीश नंवाकर करता वंदन भिक्षा दे दो न
यही सत्य हे अमरदेव तू जग का हर कोना

तू जग का हर कोना
मेरे बालाजी ... महाराजे
मेरे बालाजी ... महाराजे

कविराज तरुण

Thursday 21 December 2017

ग़ज़ल 68 कहाँ कहाँ

1212 1212 1212 1212

कहाँ कहाँ चलूँ ज़रा कहाँ कहाँ रुका करूँ ।
कहाँ कहाँ तनूं भला कहाँ कहाँ दबा करूँ ।।

ये' जिंदगी ही' जानती कि ठौर है कहाँ कहाँ ।
किवाड़ पर खड़ा खड़ा डरा डरा लुका करूँ ।।

गली-गली जली-जली कली-कली लुटी हुई ।
मै' मूक ही दिवार की दरार मे पिसा करूँ ।।

शनै शनै कदम बढ़े शनै शनै प्रयास हो ।
मै' तलहटी मे' डूबकर उभार ले उठा करूँ ।।

नमी मिली कमी मिली निगाह भी थमी मिली ।
गये तरुण वो' इसतरह कहो कहाँ वफा करूँ ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Tuesday 19 December 2017

बालाजी

ओ मेरे बालाजी मुझको आपकी दरकार है ।
तूही मालिक रूह का तूही असल सरकार है ।।
ओ मेरे बालाजी मुझको
ओ मेरे बालाजी मुझको
आपकी दरकार है ।
तूही मालिक रूह का तूही असल सरकार है ।।

रश्म-ए-उल्फ़त को निभाते जिस्म पत्थर हो गया ।
जो मिले तेरी कृपा हर ज़ख्म फिर स्वीकार है ।।
ओ मेरे बालाजी मुझको आपकी दरकार है ।
हाँ आपकी दरकार है
जी आपकी दरकार है
तूही मालिक रूह का तूही असल सरकार है ।।

बालाजी ओ मेरे बालाजी (2)
बालाजी बालाजी बालाजी
बालाजी बालाजी बालाजी

बालाजी मेरे मन के द्वारे आला जी
बालाजी बालाजी बालाजी
मेरी खुशियों का बस इक तू निवाला जी
बालाजी बालाजी बालाजी
बालाजी मेरे मन के द्वारे आला जी
बालाजी बालाजी बालाजी
मेरी खुशियों का बस इक तू निवाला जी
बालाजी बालाजी बालाजी

ऊँची कोठी बनाई मेरे किस काम की
कागज़ों की कमाई मेरे किस काम की

ऊँची कोठी बनाई मेरे किस काम की
कागज़ों की कमाई मेरे किस काम की

बालाजी बालाजी बालाजी

मैंने खोटे किये हैं सारे दिनरात भी
कितनी चोटे लगी हैं और आघात भी

बालाजी बालाजी बालाजी

बस तेरा सहारा खोजता फिर रहा
तूने जितना चलाया मै बस उतना चला
चल रहा बालाजी
चल रहा बालाजी
बालाजी बालाजी बालाजी

बालाजी मेरे मन के द्वारे आला जी
बालाजी बालाजी बालाजी
मेरी खुशियों का बस इक तू निवाला जी
बालाजी बालाजी बालाजी

तेरे कदमो में झुकाकर शीश अब मै गा रहा ।
है तरुण अखिलेश चोटिल तू रहम संसार है ।।

ओ मेरे बालाजी मुझको आपकी दरकार है ।
तूही मालिक रूह का तूही असल सरकार है ।।
ओ मेरे बालाजी मुझको
ओ मेरे बालाजी मुझको
आपकी दरकार है ।
तूही मालिक रूह का तूही असल सरकार है ।।

तूही असल सरकार है ।
मुझे आपकी दरकार है ।।

बालाजी ओ मेरे बालाजी (2)
बालाजी बालाजी बालाजी
बालाजी बालाजी बालाजी

Saturday 16 December 2017

ग़ज़ल 67 लुट गयी

212 212 212 212

चाँद खामोश था चाँदनी लुट गयी ।
साथ तेरा छुटा जिंदगी लुट गयी ।।

कह न पाये कभी दिल मिरा कह रहा ।
इन लबों की कसम रागिनी लुट गयी ।।

हाल फिलहाल मे हाल मिलता नही ।
वो ख़फ़ा यूँ हुये आशिक़ी लुट गयी ।।

सीरतें जब दिखी बात ही बात मे ।
नूर झड़ सा गया सादगी लुट गयी।।

चल तरुण छोड़ दे जो वहम पल रहा ।
चश्म-ए-दिल खुल गया रोशिनी लुट गयी ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Wednesday 6 December 2017

ग़ज़ल 66 दम निकले

1222 1222 1222 1222

बहारे हुस्न के आखिर दिवाने कब ही' कम निकले ।
जिसे सोचा शराफत की इमारत वो' हरम निकले ।।

यही हम सोचते थे वो कभी कुछ कर नही सकते ।
सलीखे जिंदगी में आज आगे दस कदम निकले ।।

फरेबी दिल की आदत को कभी मै भाँप ना पाया ।
सियारो के लिबासों में मुजाहिद बेशरम निकले ।।

बना कर ताल बादल से मै' पानी मांगकर लाया ।
जली यों आग सीने मे सभी मौसम गरम निकले ।।

नही ऊँचा हुआ है कद उन्हें नीचा दिखाने से ।
करो कुछ इसकदर कोशिश तरुण मंजिल पे' दम निकले ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Tuesday 5 December 2017

ग़ज़ल 65 सनम निकले

1222 1222 1222 1222

गली मेरी पकड़के जब लिये डोली सनम निकले ।
किसी मय्यत के' जैसे ही मिरे सारे वहम निकले ।।

किधर से ख़्वाब आये थे किधर जाने चले हमदम ।
नमी आँखों मे' लेकर के बड़े मायूस हम निकले ।।

सदाकत औ नज़ाक़त में नही उनका कोई सानी ।
न जाने किस खुमारी में वो' इतने बेरहम निकले ।।

बिना वजहें उन्हें मै दोष देता ही चला आया ।
खुली जब आँख दिन में तो मिरे सारे करम निकले ।।

सुराही प्यार की फूटी चुराने जब लगे नजरें ।
तरुण बेबस ठिकानों पे सिसकते से ही' गम निकले ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 64 तीन तलाक और हलाला

विषय - तीन तलाक और हलाला

1222 1222 1222 1222

उगा जो फूल गुलशन में शरारा हो गया होता ।
अगर जागे नही होते हलाला हो गया होता ।।

करो घुसपैठ रिश्ते में शरम तुमको नही काजी ।
बनाते रश्म ना ऐसी बहारा हो गया होता ।।

पता है तीन लफ्ज़ो मे हया के तार हिलते हैं ।
सियासी खेल से कबका किनारा हो गया होता ।।

कुहासे में घने तुम हो तुम्हारी सोच बेगैरत ।
नही करते जो' ये हरकत उजाला हो गया होता ।।

तरुण बोले कहा ये मान लो बीवी करो इज्जत ।
खुदा का फिर तुम्हे बेशक सहारा हो गया होता ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Monday 4 December 2017

ग़ज़ल 63 किरदार

2122 2122 2122 212

देखिये इस शहर में , सबका अलग किरदार है ।
दिख रहा है ठीक जो, वो ही असल बीमार है ।।

बेसबर गरजा किये, उन बादलों को क्या पता ।
जो बरस कर झर गये, वो मेघ ही स्वीकार है ।।

जीत के उन्माद में , वो दावतें करता रहा ।
हार अपनों को मिली , तो जीत भी वो हार है ।।

नफरतों के दौर मे जब सरफ़रोशी हो रही ।
तो गुलामी की हदों का आज भी अधिकार है ।।

व्यर्थ क्रंदन के स्वरों का डाकिया बनकर लगा ।
हर उदासी का मुखौटा बेहुदा मक्कार है।।

था तमाशा यार का भी , था भरोसा प्यार पर ।
उलझनों से बच निकल तो , आशिक़ी साकार है ।।

हसरतों का खामियाजा , तब भुगतना आप को ।
जब किराये पर खड़ी हर , रश्म ही व्यापार है ।।

मै जुलूसे इश्क़ की फिर , पैरवी करने चला ।
हर मुलाजिम हुस्न का ये जानिये गद्दार है ।।

इन गुलों गुलफ़ाम को माना मुहब्बत आपसे ।
कंटको से हो गये हम सुर्ख शाखें यार है ।।

आरजू भी इसतरह से कर रहे वो भोर की ।
लग रहा है रोशिनी की सूर्य को दरकार है ।।

गर इजाज़त माँगती तो जिंदगी शिकवे करूँ ।
बिन इजाज़त बात कहना भी यहाँ दुश्वार है ।।

जश्न का ये सिलसिला घर में चला जो रातदिन ।
कर भलाई दूसरों की जश्न फिर संसार है ।।

भूख जाने किस गली से आज दस्तक दे रही ।
वो सड़क पर ही ठिठुर के मौत को तैयार है ।।

इन गरीबों की रे' किस्मत चाख दिल हैं एक सब ।
सिसकियाँ ही हर्फ़ हैं औ हिचकियाँ अशआर है ।।

वो दिखावे को बसा के जाप मंतर यूँ करें ।
उस खुदा के ठौर का जैसे वही हक़दार है ।।

मै किराया जिस्म का इस रूह से लेता रहा ।
था अचंभा जिंदगी को मौत ही फनकार है ।।

जो खुदा के नाम पर खुद का भला करने लगा ।
शक्ल कैसी भी हो' उसकी नस्ल तो अय्यार है ।।

बादशाही कब रही इंसान की इंसान पे ।
वो हि मालिक वो प्रदाता वो असल सरकार है ।।

ग़ज़ल 62

ग़ज़ल - छीन लेती है
1222 1222 1222 1222

सनम अक्सर मिरे दिल की शराफत छीन लेती है ।
चली आती है' ख्वाबों मे मुहब्बत छीन लेती है ।।

जुबां की चासनी जब अर्क सी होंठो तले आये ।
किसी दिलकश मिठाई सी हलावत छीन लेती है ।।

गुज़ारिश और बारिश की अदा है एक जैसी ही।
बरसते हैं बिना मौसम इजाज़त छीन लेती है ।।

सिफारिश कर नही सकते रजामंदी नही मिलती ।
कि छत पे चाँद आ जाये इनायत छीन लेती है ।।

तरुण बेख़ौफ़ लिखता है मगर कुछ कह नही पाता ।
निगाहों की रुबाई को नज़ाकत छीन लेती है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 61 प्यार है

ग़ज़ल - प्यार है
2122 2122 2122 212

क़िस्त में मिलता रहा जो उस हसीं का प्यार है ।
देखिये कबतक जुड़ेगा हाल-ए-दिल का तार है ।।

मै मुहब्बत थोक मे उसपर लुटाता फिर रहा ।
खार मे जब पाँव है तो सामने गुलजार है ।।

बेअदब है बेमुरव्वत बेहया पर है नही ।
उस सनम का जानिये कुछ तो अलग किरदार है ।।

चौक पर घंटो बिताये चाँदनी गिरने लगी ।
नूर जब वो दिख गया लगने लगा उपहार है ।।

हो 'तरुण' कुछ इसतरह उसकी इनायत रात मे ।
ख़्वाब आँखों पर सजे यों मानिये श्रृंगार है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Friday 17 November 2017

बचपन और जवानी संशोधित

बचपन और जवानी (संशोधित)

सावन के झूले बारिश का पानी
पतझड़ के पत्ते, किस्‍से-कहानी

ओस की बूंदों पर किरणों का नाच
भारी पतंगों पर मांझे का कांच

उंगली के इशारों पर नाच रहा कंचा
गली के नुक्कड़ पर चाक़ू-तमंचा

बतरस के लट्टू में नाच रहे बच्चे
नमक से खा डाले आम कई कच्चे

नरमी पुरवाई की, ऋतुऍं सुहानी
बचपन सवालों का उत्‍तर जवानी

बे-परवाही में खूब जिया जीवन
आवारापन में ही मस्‍त रहा यौवन

चंदा की चांदनी में छत पर उजास
मिलने पर भारी है मिलने की आस

लैलाओं की गलियों मजनू के मेले
भीड़ में रहकर भी सब हैं अकेले

कौन है चंदा कौन है चकोर
समझ नहीं पाए और हो गई भोर

सुनहरे सपनों की ऊँची उड़ान
ऑंखों में हरदम नीला आसमान

लेकिन जब धरती पर नजरें झुकाईं
पर्वतों के बीच दिखी गहरी सी खाई

माँ के आँचल में दुखों का पहाड़
ऑंखों के पानी से गल रहा हाड़

वोटों के बैंक या ताशों की गड्डी
बच्‍चों के गालों पर उभर आई हड्डी

रिश्‍तों और नातों में आई खटास
ऐसे निभाते ज्‍यों ढोते हों लाश

कितनी घिनौनी है सच की कहानी
झूठा है बचपन और झूठी जवानी

Monday 6 November 2017

ग़ज़ल 60 बेजुबाँ

212 212 212 212

महफिलों में रहा बेजुबाँ की तरह ।
बादलों से ढके आसमाँ की तरह ।।

कोई' तस्वीर तेरी दिखाता नही ।
जिंदगी हो गई अब धुआँ की तरह ।।

कहकशे खूब लगते थे' हर बात पे ।
आज बातें हुई खामखाँ की तरह ।।

सुन के आता रहा चीख़ दीवार पर ।
दिल हुआ खंडहर के मकाँ की तरह ।।

उन निगाहों ने' रुसवा किया यूँ *तरुण* ।
ख़ुश्क सा फिर हुआ मै खिजाँ की तरह ।।

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

Saturday 4 November 2017

ग़ज़ल 59 इश्क़ की दौलत


212 1222 212 1222

जो भी' दिल की' दौलत है इश्क़ की बदौलत है ।
आ ज़रा निगाहों में इसमे' बस मुहब्बत है ।।

खामखाँ करे बातें अपने आप से ही हम ।
नूर सा हसीं चहरा फूल सी नज़ाकत है ।।

है ख़फ़ा ख़ुदा मुझसे तुझको जो खुदा माना ।
इश्क़ है मिरा मज़हब इश्क़ ही इबादत है ।।

बेदिली न दिल समझे बेरुखी न हो पाये ।
हर अदा नवाजी है आशिक़ी इनायत है ।।

नाम तेरा' ले लेकर जी रहा *तरुण* ऐसे ।
साँस मुझको' लेने की अब कहाँ जरूरत है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Wednesday 1 November 2017

ग़ज़ल 58 बेतुकी मुहब्बत

212 1222 212 1222

बेतुकी मुहब्बत का आज ये जमाना है ।
खामखाँ हसीनो से क्यों नज़र मिलाना है ।।

टूटकर बिखरते हैं ख़्वाब आशियानें के ।
दिल लुटाके' गैरों पे घर कहाँ बनाना है ।।

आशिक़ी फरेबी है जान पर भी' आ जाये ।
अश्क़ से भरा रहता इसमे' आबदाना है ।।

राह मुश्किलों की है हरतरफ सवाली हैं ।
घूरती निगाहों का रोज ही फ़साना है ।।

जो तरुण मुनासिब हो इश्क़ में नही होता ।
डूबकर के' दरिया मे पार तुझको' जाना है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Friday 27 October 2017

मेरी फेसबुक पोस्ट्स

तुम मुझे कभी सुलाती नहीं हो
मैं पास आता हूँ तुम पास आती नही हो
ख़फ़ा बहुत हूँ तुमसे ऐ चाँदनी
चंदा को छोड़ कहीं भी जाती नही हो
***
चलो एक ऐसी रोली गाते हैं
आज इस रात को सुलाते हैं
***
वो ज़रा बन जाये दिलवाली
तो अपनी भी मन जाये दिवाली
***
जलाओ दीप कुछ इसतरह यारों
अँधेरा जग में कहीं रह न जाए
शुभ दीपावली
***
अगर ये है मुहब्बत तो मुहब्बत मान लेते हैं ।
चलो कुछ तुम कदम कुछ हम चलें ये ठान लेते हैं ।।
अदायें लाज़िमी हैं हुस्न की चौखट तले आयें ।
हया का तिल सजाकर वो हमेशा जान लेते हैं ।।
मिलावट हो नही पाती करूँ कोशिश भला मै क्यों ।
बिना कत्थे सुपारी के वो' मीठा पान लेते हैं ।।
०-कविराज तरुण-०
***
दुश्वारियां भी हैं ,बेकारियां भी हैं
मुहब्बत कर नही सकते, लाचारियां भी हैं
***
नींद को ख़बर नही है
मेरी आँख है , तेरा घर नही है
***
कुछ असर तो तुझे भी होगा
नजरे तुमने भी मिलाई थी

क.त.००१

कान दीवारों के सजग थे
खबर दराजों को भी थी जब तू आई थी

क.त. ००२
***
रवाँ हुस्न तेरा फलक का सितारा ।
तरुण जल न पाया जो बुझता दिया है ।।
***
जब ख़ामोश हूँ मै
तो होश मे हूँ मै
कुछ बोलूँगा तो राज़ खुल जायेंगे ।
***
कभी तकदीर हँसती है कभी तस्वीर हँसती है ।
मै' इनपर भी हँसूँ थोड़ा अगर तू साथ हँसती है ।।
कविराज तरुण
***
फर्क पड़ता नही कितने दुश्मन हैं लिफ़ाफ़े मे
कोशिश बस इतनी है दोस्त होते रहे इज़ाफ़े में
***
फिर वफ़ा का नूर आया है मुझे
चौक पर उसने बुलाया है मुझे

कविराज तरुण
***
शाम भी रात भी नाम भी बात भी
कुछ न मेरा रहा सब तेरा हो गया

कविराज तरुण
***
की एक सिफारिश और नींद आ गई
ख़्वाब तुमने अबतक मेरा साथ नही छोड़ा

कविराज तरुण
***
मत आना छत पर जुल्फ़े संवारने
भीड़ ज्यादा है
बड़ी लंबी कतार है
कविराज तरुण
***
आज के इस दौर में अफ़सोस यही होता है
कोई भी घटना हो जाये
जोश बस चार दिन का होता है
#ArrestRyanPinto
***

ऐ सूरज बादलों के पार हो जाओ
बारिश की सलाखों में गिरफ्तार हो जाओ
सुप्रभात
कविराज तरुण
***
दो चार आँसूं में लिपटकर रो जाऊँगा
याद करूँगा तुझे और सिमटकर सो जाऊँगा
💐शुभरात्रि 💐
कविराज तरुण 9451348935
***
मर गया प्रद्युम्न वो तो पढ़ने गया था
माँ के सपनो में दो कदम बढ़ने गया था
मासूमियत पर किसने चाकू चलाये
स्कूल में कैसे अब कोई जाये
***
कभी कोई , कभी कोई
कभी कोई खुदा से मांग लेता है
दुआ हो तुम कोई इंसान नही हो
कविराज तरुण
***
तुम गुल रहो मै गुलफाम हो जाऊँ
तेरे चौखट पर उतरी इक शाम हो जाऊँ
नही कुछ मांगूँ मै दुआ मे
रहो तुम ख़ास और मै आम हो जाऊँ
***
वो सरेआम लगाते रहे इल्ज़ाम
मैंने वफ़ा में मगर लफ्ज़ नही खोले

कविराज तरुण
***
न दिल न दुआ न जमीन है अबतक
जिंदगी फिरभी बेहतरीन है अबतक
सुप्रभात
कविराज तरुण
***
शायद यही दस्तूर था
उनका जाना एक सच
उनका आना मेरे मन का फितूर था
-कविराज तरुण
***
ख़्वाहिश है ,बारिश है ,मै हूँ और तुम
बंदिश है घरवालों की हुमतुम गुमसुम

कविराज तरुण
***

Thursday 19 October 2017

ग़ज़ल 57 दिवाली

1222 1222 1222 122

दिया बाती अभी से ही जलाने हम लगे हैं ।
दिवाली की कई रौनक लगाने हम लगे हैं ।।

सफेदी से दिवारें जगमगाई रात में भी ।
किवाड़ों को जतन से अब सजाने हम लगे हैं ।।

बढ़ा कुछ इसकदर अब धुंध मौसम खौफ़ मे है ।
पटाखे छोड़कर के गीत गाने हम लगे हैं ।।

मिठाई का रिवाजी पर्व जबसे आ गया है ।
जुबां पे चासनी के घोल लाने हम लगे हैं ।।

तरुण श्रीराम की उस जीत का अभिप्राय है ये ।
ख़ुशी अपनी जताकर फिर बताने हम लगे हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Sunday 15 October 2017

ग़ज़ल 55 हम लगे हैं

1222 1222 1222 122

तिरे आगोश में राते बिताने हम लगे हैं ।
हसीं सपने खुली आँखें सजाने हम लगे हैं ।।

ख़बर हो जाये' चंदा को यही सब सोचकर हम ।
दुप्पटे को फलक पर अब उड़ाने हम लगे हैं ।।

कभी आओ जमीने शायरी दहलीज पर तुम ।
बिना सोचे पलक अपनी बिछाने हम लगे हैं ।।

असर बस उम्र का है और कुछ भी है नही ये ।
तेरी बाते सनम खुद से छुपाने हम लगे हैं ।।

पिरोया हर्फ़ में हर हुस्न मोती जोड़कर के ।
तरुण के लफ़्ज़ बनकर बुदबुदाने हम लगे हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Saturday 14 October 2017

ग़ज़ल 54 - जब तुमसे मिलूँगा

1222 122

मै जब तुमसे मिलूँगा ।
लिपटकर रो ही' दूँगा ।।

मुहब्बत बेजुबां है ।
निगाहों से कहूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

हसीं सपना संजोया ।
तिरे दिल में रहूँगा ।।

सफ़र में थाम बाहें ।
सितारों तक चलूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

तू' जादू हुस्न का है ।
हया इसमें भरूँगा ।।

सजाकर मांग तेरी ।
तिरा शौहर बनूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

ख़लिश हो या खता हो ।
तबस्सुम सा दिखूँगा ।।

तरुण की तू खुदाई ।
तिरा सजदा करूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

Tuesday 10 October 2017

ग़ज़ल 53 आज़मा लो

1222 122

कदम आगे बढ़ा लो ।
खुदी को आजमा लो ।।

जो' नफ़रत की अगन है ।
उसे अब तो बुझा लो ।।

है' दिल में बेरुखी क्यों ।
हदें सारी हटा लो ।।

नई भाषा मुहब्बत ।
कभी तो गुनगुना लो ।।

अँधेरा कह रहा है ।
डरो मत मुस्कुरा लो ।।

चरागों को उठाकर ।
शमा कोई जला लो ।।

खलिश ऐसी भी' क्या है ।
कि पलकें ही गिरा लो ।।

चले आओ फ़िज़ा मे ।
हमे हमसे चुरा लो ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Wednesday 4 October 2017

ग़ज़ल 52 प्यार की है

1222 1222 122

अभी दिल मे रवानी प्यार की है ।
अभी बाकी कहानी प्यार की है ।।

चिरागों से कहो जल जाये' अब वो ।
कई हसरत पुरानी प्यार की है ।।

कि गहरी हो चली है चोट दिल की ।
ज़रा देखो निशानी प्यार की है ।।

रवां हैं हुस्न की बारीकियां भी ।
जवां अबतक जवानी प्यार की है ।।

समझ मोती तरुण जो आँख नम है ।
यही अपनी ज़ुबानी प्यार की है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Tuesday 3 October 2017

ग़ज़ल 51 मै हमेशा

1222 1222 122

रुका था सर झुकाने मै हमेशा ।
कई बातें बताने मै हमेशा ।।

कि तुमने डोर छोड़ी बीच मे ही ।
लगा खुद को मनाने मै हमेशा ।।

उनींदी आँख से सपने हुये गुम ।
चला जब नींद लाने मै हमेशा ।।

तुम्हे समझा मुहब्बत ये खता की ।
न समझा ये कहानी मै हमेशा ।।

जो' रूठे हो तरुण से रूठ जाओ ।
नही आता रिझाने मै हमेशा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Monday 2 October 2017

ग़ज़ल 50 गम में काफ़िया

122 122 122 122

किवाड़ों की' उलझन को' हमने जिया है ।।
दरारों को' भीतर से' हमने सिया है ।

फ़कीरी उदासी परेशानियां थी ।
रदीफ़े बहर ग़म मे' ये काफ़िया है ।।

मिला बंदिगी में खुदा का सहारा ।
तभी नाम जीवन ये' उसके किया है ।।

रहम की गुज़ारिश करे भी तो' कैसे ।
ज़हर अपने हाथों से' हमने पिया है ।।

रवाँ हुस्न तेरा फलक का सितारा ।
'तरुण' जल न पाया जो' बुझता दिया है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 49 भगत

122 122 122 122

भगत ये चरण में कदा चाहता है ।
नही और कोई दुआ चाहता है ।।

दुखों की दुपहरी विदा चाहता है ।
किरण में घुली हर अदा चाहता है ।।

कपूरी कहानी नही ज्यादा' दिन की ।
बिखरने से' पहले हवा चाहता है ।।

घने हैं अँधेरे बड़ी मुश्किलें हैं ।
उजाला हो' इतनी दया चाहता है ।।

किधर पुन्य छूटा किधर पाप आया ।
मगर साथ तेरा सदा चाहता है ।।

माँ' अम्बे भवानी कहूँ क्या कहानी ।
'तरुण' खूबसूरत फ़िजा चाहता है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 48 प्रेमी प्रेमिका

संशोधित

प्रतियोगिता हेतु ग़ज़ल
बहर- १२२ १२२ १२२ १२२

प्रेमी-
कभी है मुहब्बत कभी है बगावत ।
बता कैसे' दिल की मिलेगी युं राहत ।।
प्रेमिका-
कभी तुम फरेबी कभी हो हक़ीक़त ।
मिलेगी नही दर्द-ए-दिल को इनायत ।।

प्रेमी-
कभी पास आते कभी दूर जाते ।
अधूरी कहानी अधूरी सी' चाहत ।।
प्रेमिका-
नही तुम रिझाते नही तुम मनाते ।
हैं' बातें पुरानी तुम्हारी नज़ाक़त ।।

प्रेमी-
दिया लेके' खोजो न हमसा मिलेगा ।
शरीफो ने' सीखी है' हमसे शराफ़त ।।
प्रेमिका-
अजी झूठ बोलो न सबको पता है ।
तिरे यार ही मुझको' देते नसीहत ।।

प्रेमी-
नही दोस्त समझो वो' दिल के बुरे हैं ।
रखी जहन मे है अजब ही अदावत ।।
प्रेमिका-
चलो ठीक है मानती तेरी' बातें ।
मगर ध्यान रखना मिले ना शिकायत ।।

प्रेमी-
भरोसा करो मै न तोडूंगा' इसको ।
मिरे दिल की' रानी मै' तेरी रियासत ।।
प्रेमिका-
न अब हो हिमाकत न कोई शरारत ।
बड़े प्यार से हम करेंगे मुहब्बत ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 47 फ़साना है

1222 1222

न समझो तो बहाना है ।
जो' समझो तो फ़साना है ।।

गुले गुलज़ार की चाहत ।
सजोये आबदाना है ।।

खलिश किसको नही मिलती ।
रिवाज़ो में ज़माना है ।।

चलो देखो कुहासे मे ।
अगर इसपार आना है ।।

मुहब्बत बुलबुला जल का ।
इसे तो फूट जाना है ।।

करो कोशिश कभी तुम भी ।
जवानी इक तराना है ।।

नही सुरताल से मतलब ।
अदा से गुनगुनाना है ।।

मिले दुश्वारियां सच है ।
मज़ा फिरभी पुराना है ।।

'तरुण' घायल बहुत ये दिल ।
मगर किस्सा बनाना है ।।

कविराज तरुण सक्षम

ग़ज़ल 46 मन मेरा

1222 1222

दिखे उसको जतन मेरा ।
बड़ा मासूम मन मेरा ।।

दराजो से निहारूँ मै ।
करे कोशिश नयन मेरा ।।

चली आना दुआरे पे ।
नही करना हनन मेरा ।।

सजी है सेज फूलों की ।
सजे जो तू चमन मेरा ।।

मिरी सीरत मिरी चाहत ।
अदम बेशक बदन मेरा ।।

निकलते हर्फ़ दिल भारी ।
तरुण समझो वजन मेरा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 45 रिश्ते निभाऊँगा


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कभी मै सर झुकाउंगा ।
कभी पलकें बिछाऊँगा ।।

हथेली पर सजा रातें ।
फलक पर भी बिठाऊंगा ।।

नही यूँही बना शायर ।
ग़ज़ल तुझपर बनाऊंगा ।।

चली जिस ओर पुरवाई ।
वहाँ तुमको घुमाउंगा ।।

अदब दिल मे मिरे हसरत ।
कई किस्से सुनाऊंगा ।।

तरुण है नाम प्रेमी हूँ ।
सभी रिश्ते निभाऊंगा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 44 असर देखो

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हुआ दिल पर असर देखो ।
मिला तुमको ये' घर देखो ।।

कहाँ जाओ ख़फ़ा हो के ।
बिछी मेरी नज़र देखो ।।

कमल क्यों खिल उठा है ये ।
गुलाबों के अधर देखो ।।

अगर मुमकिन जवानी में ।
निकल मेरा शहर देखो ।।

जुबां से आदमी हूँ मै ।
खुदा अंदर ठहर देखो ।।

मुहब्बत की इनायत है ।
तरुण देखो ब-हर देखो ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 43 दिल टूटा

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वफ़ा छूटी ये' दिल रूठा ।
सनम तुमने बहुत लूटा ।।

करी कोशिश सदा मैंने ।
मिला बस दर्द मन टूटा ।।

बढ़े बेशक कदम तेरे ।
मगर मेरा ही' दर छूटा ।।

खुदा नाराज़ था मुझसे ।
मिला जो सच वही झूठा ।।

तरुण लो सीख अब इससे ।
गुबारा प्यार का फूटा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 42 कसम से


1222 1222 122

चलो चल दे बहारों में कसम से ।
हो' अपना घर सितारों में कसम से ।।

नही वो बात आती है अकेले ।
मुहब्बत के दुआरों में कसम से ।।

तपिश हो साँस में औ रूह प्यासी ।
मज़ा है तब शरारों में कसम से ।।

बता कर दिल्लगी की है तो' क्या है ।
समझ लेना इशारों में कसम से ।।

तुम्हे मालूम पड़ जाये हक़ीक़त ।
ज़रा देखो दरारों में कसम से ।।

भँवर के बीच आओ और जानो ।
नही मोती किनारों में कसम से ।।

तरुण तेरी ख़बर मिलती नही कुछ ।
चुना है किन दिवारों में कसम से ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'