Tuesday 31 December 2013

नववर्ष आगमन

नववर्ष आगमन

रश्मियाँ भोर की कल भी आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा से अमर कर दो
सोच लो ठान लो मन का संज्ञान लो
इस हिमालय से ऊँचा ये सर कर दो
काल के द्वार पर हिय का दरबार है
आत्म मंथन से संभव ही उद्धार है
नेत्र अंजलि पर दीप की रोशिनी
वाणी इतनी सहज शक्कर की चासनी
तेज माथे पर और होंटो पर मुस्कान हो
सुख समृद्धि सुयश का नववर्ष पहचान हो
इन विचारों का ह्रदय में आज घर कर दो
रात स्वप्निल सुधा से अमर कर दो

--- कविराज तरुण

Thursday 26 December 2013

तुमसे है

तुमसे है.........

इस दिल की चाहत ,
मन की हसरत,
तन की कुदरत,
तुमसे है...
धड़कन में आहट,
हर लम्हा फुरसत,
काबा कुरबत,
तुमसे है...
इस सरजमीं पर,
हर रोशिनी पर,
सारी नूरी सिरकत,
तुमसे है...
कैसे बताये हम,
क्या छुपाये हम,
अब सारी रहमत,
तुमसे है ...
तू यकीन है,
तू शुकून है,
तू खुदा इबादत,
तुमसे है...
मेरे दिल की ज़न्नत,
रूहानी अस्मत,
मेरा वजूद हिम्मत,
तुमसे है...
आँखों की हरकत,
होंटो की फिदरत,
हाथों की किस्मत,
तुमसे है ।
मेरी अंतर्मुरत,
साँसों की जरुरत,
सूरत और सीरत,
तुमसे है...
दिलनशी तू दिलकशी तू,
है तू अकीदत,
और मोहब्बत,
तुमसे है।।।

---कविराज तरुण

Friday 13 December 2013

गई उम्मीद तुमको पाने की

गई उम्मीद तुमको पाने की

गई उम्मीद तुमको पाने की ...
करूं क्यों चाहत तुम्हे बुलाने की ...
  मौत से बढ़कर तेरे जाने का पैगाम लगा
  जिंदगी हर घड़ी लगती है बस एक सज़ा
  ये रूह हँसती है और दर्द झलकने लगता है
  भीगी आँखों से ये अश्क छलकने लगता है
क्या वजह थी मुझे यूँ रुलाने की ...
गई उम्मीद तुमको पाने की ...
करूं क्यों चाहत तुम्हे बुलाने की ...
  यकीन न था कभी ये दिन भी आयेगा
  बन के आंसू मेरी पलकों को तू भिगायेगा
  गुजरे लम्हे तेरी डोली संग गुजर ही गये
  यूँ तो जिंदा हैं पर जीते जी हम मर ही गये
कोशिशें करता हूँ अक्सर तुम्हे भुलाने की ...
गई उम्मीद तुमको पाने की ...
करूं क्यों चाहत तुम्हे बुलाने की ...
  था अदब मुझको तेरी वफ़ा पर इतनी हद तक
  बैठा के रखा था तुझे खुदा के पद तक
  पर तूने तोड़ा ये दिल और मेरा भरोसा भी
  खुद को कई बार तभी मैंने कोसा भी
थी गलती तुझसे दिल लगाने की ...
गई उम्मीद तुमको पाने की ...
करूं क्यों चाहत तुम्हे बुलाने की ...


--- कविराज तरुण


केजरी की लीला

केजरी की लीला

दिल्ली के प्रांगण में केजरी की लीला ...
कमल मुरझा गया पस्त हुई शीला ...
मेट्रो के नाम का बहुत दिया झांसा ...
आम जनता को था बहुत दिन से फांसा ...
गरीबो को इन्होने कही का न छोड़ा ...
उन्नति के रास्ते में प्रलोभन का रोड़ा ...
कॉमन को होती रही वेल्थ की प्रोब्लम ...
कॉमनवेल्थ में दिखा दिया अपना तुमने आचरण ...
नारी की इज्ज़त भी तार तार हो गई ...
तुमको लगा जनता सब देख कर भी सो गई ...
इतने अनशन इतनी भीड़ तुम्हे समझा रहे थे ...
पर सत्ता के मद में तुम बहुत मुस्कुरा रहे थे ...
तभी मतदाता ने किया पेंच सारा ढीला ...
कांग्रेस का हाथ सारा आंसुओ से गीला ...
दिल्ली के प्रांगण में केजरी की लीला ...
कमल मुरझा गया पस्त हुई शीला ...

---कविराज तरुण

जिन्दगी

जिंदगी

न जाने कैसी रफ़्तार में है जिंदगी
कश्ती डूब रही मंझधार में है जिंदगी
या तो संभाले खुद को या उन्हें हौसला दे
वक्त की अजीब मार में है जिंदगी
सुना था राह आसान बना देती है
साथ चलने वाले के जब प्यार में है जिंदगी
पर हर मोड़ पर हो जब अंतर्मन की उलझने
खुशियों से वंचित तिरस्कार में है जिंदगी
डूब जाता है सूरज भी अपनी रोशिनी लेकर
ऐसे अँधेरे के आज गुबार में है जिंदगी
न हँसी न ठिठोली न खुशियों की कोई झोली
सन्नाटे से भरे किस संसार में है जिंदगी

--- कविराज तरुण

Monday 18 November 2013

याद आने लगे



फूल गुलशन के फिर मुस्कुराने लगे...
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ...
हाँ मुमकिन है ख्वाबो में इश्क करना,
नींद आँखों में हम अपने सजाने लगे ।

चाँद की रोशिनी मेरे घर पर पड़ी ...
रातरानी की डाली पर कलिया खिली...
हम उन्हें पास अपने बुलाने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

दुपहरी में अपनी मुलाक़ात में...
लम्हे लम्हे में शामिल हर बात में ...
याद है कैसे वो शर्माने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

एक पल वो भी था, थे खफा वो बहुत...
पास तो खूब थे पर, थे जुदा वो बहुत...
रूठते वो गए हम मनाने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

इस गलीचे पर कदमो की आहट को लेकर...
अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट 
को लेकर...
प्यार की नई दुनिया हम बसाने लगे,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

- कविराज तरुण

कोई तो रोको


कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।
गाँधी सुभाष भगत सिंह...
    हर हस्ती पिघल रही है ।।
इस वतन का कोना-कोना
    बना राजनीति का खिलौना
मौन है क्यूँ राजा...
    जनता उबल रही है ।
कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।।
हो पंजाब सिंध मराठी
    या क्षत्रिय ब्रह्म या भाटी
जाति धरम से हिन्द की...
    अब आत्मा बिखल रही है ।
हिमखंडो का हिमालय
    बंगाल की या खाड़ी...
पूरब की सरजमीं हो
    या फिर हो कन्याकुमारी...
विभक्त टुकड़ो में भारती की...
    इज्जत उछल रही है ।
और साख इस वतन की ...
    देखो फिसल रही है ।।
कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।
गाँधी सुभाष भगत सिंह...
    हर हस्ती पिघल रही है ।।


--- कविराज तरुण





रंग तिरंगे का


रंग तिरंगे का एक दिन पूछेगा हमसे...

खुद को किस रंग में हमने रंग लिया है

सफेदपोशो ने देखो सफेदी को इसके

नित किस तरीके से मैला किया है

खून खराबे ने केसरिया पट्टी को इसके

आज बदलकर रक्तरंजित किया है

रंग हरा है इसमें पर हरियाली कहाँ है

चक्र खामोश है खुशहाली कहाँ है

ये तो लहराता है पर न कह पाता है

राष्ट्र-सम्मान का ये क्या सिलसिला है

रंग तिरंगे का एक दिन पूछेगा हमसे...

खुद को किस रंग में हमने रंग लिया है


--- कविराज तरुण




Tuesday 12 November 2013

वाह वाह मेरे आसाराम


सुबह भजन शाम को जाम ...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
धर्म संस्कृति हुई बदनाम ...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
कथनी करनी में भेद के पोषक !!
बाल-बालाओं के आदि शोषक !!
विकृत मनोवृति के साक्षात द्योतक !!
समाज निर्माण के गति अवरोधक !!
कुकर्मी कषुलित कर दिया नाम...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
धर्म का कर दिया काम तमाम...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
काम क्रोध मद लोभ के साधक !!
सभ्य सोच के अतुलित बाधक !!
दुष्कर्म चरित्र नवरस मादक !!
संकीर्ण बुद्धि और कुकृत्य व्यापक !!
गलती का भुकतो अंजाम...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
बुरे कर्म का बुरा परिणाम ...
वाह वाह मेरे आसाराम ।

-कविराज तरुण

Sunday 27 October 2013

izhaar

 इज़हार ...

 वही भाव जो शून्य पड़े थे 
 छुपे थे झुरमुट की ओट में ...
 आज जूही के पीछे से चले आ रहे हैं |
 कहने को रखा है बहुत कुछ यहाँ पर ...
 पर ये अधर हैं की जैसे , एक - दुसरे पर सिले जा रहे हैं |
 ना समझा सकूँगा मै कुछ भी यहाँ पर ...
 कर्ण बाधिर हुए हैं , चेतन अचेतन की दशा पा रहे हैं |
 पर इस बेशरम दिल की हिमाकत तो देखो ...
 स्थिर कोषों में प्रेम की धुन , निरंतर गुनगुना रहे हैं |
 जब भी करता हूँ कोशिश
 बोल दूं दिल की बातें 
 शब्द मूर्छित हुए हैं , लफ्ज़ घबरा रहे हैं |
 आज फिर ना कहूँगा और चुप ही रहूँगा ...
 तुम खुद ही समझना , दो नैना मेरे जो समझा रहे हैं ||


 एक नज़्म -

 " वो सदियों पुराना रिवाज़ कुछ बदला नहीं है ..
   हर कहानी में मोहब्बत , और मोहब्बत में दुश्मन जगह पा रहे हैं |"


 --- कविराज तरुण 

  



Sunday 1 September 2013

वोट बैंक

जब जब चौराहे पर मेरी लाज उतारी जाती है |
संसद में बैठे सफेदपोश को तनिक लाज न आती है ||
कभी निर्भया कहकर मुझको झूठी आस दिखाते हैं |
ये चरित्रहीन और मर्म विहीन " बेटी की इज्ज़त " पे दांव लगाते हैं ||
मेरी अस्मत भी वोट बैंक ...
हर जुर्म की हरकत वोट बैंक ...
काबा और कुर्बत वोट बैंक ...
जाति और मजहब वोट बैंक ...
इसी निति के राज में सारी , राजनीति खेली जाती है |
संसद में बैठे सफेदपोश को तनिक लाज न आती है ||

--- कविराज तरुण

Tuesday 27 August 2013

आवाज़ उठेगी ( WAKE UP )


चाहे दुष्कर्म की शिकार हुई बालिकाओं के परिजन हों या फिर सीमा पर शहीद हुए जवानों के परिवार ...  सत्तापक्ष के झूठे आश्वासन और विपक्ष के सियासती आंसू से सब क्षुब्द हैं |
माननीय अटल जी ने कहा था - राजनीति में विचारों का स्वागत है , परन्तु विचारो में राजनीति देशहित में कदापि नहीं |
आज वैचारिक राजनीति का राजनैतिक विचारों में इस भांति प्रवेश वाकई चिंता का विषय है | प्रस्तुत है एक रचना :

जब जख्म कुरेदे जाते हैं , बातों से हथियारों से |
माँ सीना छलनी हो जाता है , नेता के इक - इक नारों से ||
आसान नहीं जी के मरना , आसान नहीं मर के जीना |
पर अंतर कौन बता पाए , इन सत्ता के रखवालों से ||
झूठे वादे झूठे आंसू , बह जाते हैं इनके कोषों से |
अपनी सत्ता की मंशा ये , पूरी करते हम निर्दोषों से ||
सीमा पर स्वास शहादत की , विषय - वस्तु है संसद की |
कुर्सी के लोभी ये क्या जाने , क्या होती कीमत अस्मत की ||
न जाने कितने विषम रूप , नित निकलेंगे इनके आगारो से |
समय है अभी दमन कर दो , इनको वोटो के अधिकारों से ||
आवाज़ उठेगी बस्ती से , आवाज़ उठेगी गलियारों से |
पाई पाई की सुध लेंगे हम , इन जनता के गद्दारों से ||
जब जख्म कुरेदे जाते हैं , बातों से हथियारों से |
माँ सीना छलनी हो जाता है , नेता के इक - इक नारों से ||

--- कविराज तरुण 


Wednesday 21 August 2013

The Intrepider - अहम् निर्भीकमास्मि

The Intrepider -  अहम्  निर्भीकमास्मि | 

काल के कपाट स्वतः ही बंद हो गए ...
रण-बांकुर धरा पे आज चंद हो गए |
अब कैसे बजेगी विजय की धुनी ....
छूते ही तार खंड खंड हो गए ||
इस नश्वर जगत में एक ऐसी भी पहाड़ी ...
जहाँ युद्ध कौशल के सारे प्रबंध हो गए |
अब आएगा समक्ष ऐसा वीर योद्धा ...
जिसकी हुंकार से विरोधियों के मान भंग भंग हो गए ||

--- कविराज तरुण   

Tuesday 6 August 2013

mere banke bihari ( lord krishna bhajan)


मेरे बांके बिहारी अरज सुन लो ...
हूँ मै दासी तुम्हारी मुझे चुन लो ...
मेरे बांके बिहारी अरज सुन लो ...
तेरी बंशी बजे मेरे कानो में ... मेरे कानो में ...
तू मन को प्यारा लगे भगवानो में ... भगवानो में ...
पीला अम्बर तेरा तिरछे नैना तेरे ...
भोली मुस्कान है चक्षु रैना तेरे ...
अपनी मुरली में ... अपनी मुरली में ...
अपनी मुरली में सतरंगी सी धुन लो ...
मेरे बांके बिहारी अरज सुन लो ...
हूँ मै दासी तुम्हारी मुझे चुन लो ...
द्वारिका का किशन मेरा सांझी है ... मेरा सांझी है ...
हूँ मै कस्ती तेरी , तू मेरा माझी है ... मेरा माझी है ...
तेरी अठखेलियाँ तेरी लीला अमर ...
ब्रज की गोपियाँ तुमको चाहे कुंवर ...
अपनी वाणी से ... अपनी वाणी से ...
अपनी वाणी से ताना-बाना मधुर बुन लो ...
मेरे बांके बिहारी अरज सुन लो ...
हूँ मै दासी तुम्हारी मुझे चुन लो ...

--- कविराज तरुण

Friday 2 August 2013

prakritik avchetna


प्राकृतिक अवचेतना 

वसुंधरा है आज नम , वो वादियाँ कहाँ गयी |
दिखा के हमको सात रंग , इन्द्र रश्मियाँ कहाँ गयी |
कहाँ गयी वो स्वच्छ मारुत , कहाँ गयी तरु - मंजरी |
कहाँ बचे हैं वृक्ष ही , कहाँ बचा धन्वन्तरी |
बस प्राण रोकती हुई , जल वायु और आकाश है |
और धुल के हर एक कण में , विषधार का निवास है |
चन्द्र भी है आज मंद , रवि क्रोध में दहक रहा |
गर्मी वर्षा ठण्ड का , क्रम रोज ही बदल रहा |
लुप्त होते जीव-जंतु , विलुप्त प्राकृतिक अवचेतना |
मिट्टी के हर एक अंश में , बस है विरह की वेदना |
वो कर्त्तव्य बोध कहाँ गया , वो कल्पना कहाँ गयी |
पृथ्वी के संरक्षण की , कर्म भावना कहाँ गयी |
वसुंधरा है आज नम , वो वादियाँ कहाँ गयी |
दिखा के हमको सात रंग , इन्द्र रश्मियाँ कहाँ गयी |

--- कविराज तरुण 

Sunday 28 July 2013

prabhubhakti prarthana

प्रभुभक्ति प्रार्थना

आओ तनिक तुम अर्चन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

नभ में प्रकाशित सूर्य हमारा ...
और पूर्णिमा में चंदा ये प्यारा ...
कर जोड़कर के अभिनन्दन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

है अन्नदाता अन्नपूर्णा माता ...
नश्वर जगत के शिव जी विधाता ...
लक्ष्मी सुयश कीर्तिवर्धन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

है आदिशक्ति माँ दुर्गा हमारी ...
मन में बसे हैं बांके बिहारी ...
ऋषि देवताओ का वंदन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

रज - रज को प्यारी विन्ध्याकुमारी ...
है संकट मोचन परम ब्रह्मचारी ...
रोली लगालो आज चन्दन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

ब्रह्मा चतुर्मुख कमल पर विराजित ...
विष्णुजी ने किया असुरो को पराजित ...
सदभावना का तुम आलिंगन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

सब कार्य सफल करती हैं वैष्णो माता ...
शुभ - लाभ के हैं गणपति जी दाता ...
सब त्याग कर आज कीर्तन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

आओ तनिक तुम अर्चन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

--- कविराज तरुण

Wednesday 24 July 2013

ग़ज़ल : ना दिल चाहिए ना दुआ चाहिए

ग़ज़ल : ना दिल चाहिए ना दुआ चाहिए

ना दिल चाहिए ना दुआ चाहिए |
मुझ...को तो एहदे वफ़ा चाहिए ||
लोग कमज़र्फ हैं और फरेबी भी हैं |
मुझको मालिक तेरी आबिदा चाहिए ||
आईना पाक है , सिर्फ नीयत बुरी |
उनकी सूरत में सीरत फिजा चाहिए ||
अप्सरा नूर की कब थी ख्वाहिश हमें |
मुझको रहमत तेरी साहिबा चाहिए ||
सामने आ गए रूह के सिलसिले |
प्यार की रहगुजर में एक रज़ा चाहिए ||
ना गिला चाहिए ना सिला चाहिए |
आफरीन तेरे चेहरे पे शोखी अदा चाहिए ||
एक नज़र देख लो और असर देख लो |
मुझको नजरो नज़र में खुदा चाहिए ||
ना दिल चाहिए ना दुआ चाहिए |
मुझ...को तो एहदे वफ़ा चाहिए ||

--- कविराज तरुण


pyar ki paribhasha



प्यार की परिभाषा 
परिभाषा दे तू अथाह प्यार की 
          तो इस जीवन का सार मिले |
सिमट गयी जो शिव जटा में ...
          उस गंगा को भी धार मिले ||
चाह नहीं मै सब कुछ पा लूं ...
          पर इतना तो अधिकार मिले |
कि जब जब देखूं स्वप्न तेरा ...
          मुझे दिव्य अलौकिक प्यार मिले ||

तू आने वाले कल की सोचे ......... वर्तमान पर तेरा ध्यान नहीं |
ये जीवन किसने देखा है ............. है प्यार मेरा ये विज्ञान नहीं ||
तुम संग चलो बस बाहें डाले ...सब भूलके बंधन , भूल के ताले |
सूरज जब अपना चमकेगा .......... मिट जायेंगे ये बादल काले ||
खुशियों की भी एक दुनिया है ....गम का भी जिसमे हिस्सा है |
धुप छाँव में सिमटा - लिपटा ....... अपना ये सुन्दर किस्सा है ||
आ पास मेरे तू बैठ ज़रा ...................... जो होना है हो जायेगा |
यूं दूर सदा रहकर मुझसे .................... तू मुझे भूल न पायेगा ||

बस यही प्रार्थना प्रभु से मेरी ...
         तुझको आनंद सृजित संसार मिले |
जीवन के कोरे पृष्ठों पर ...
        अंकित अदभुत प्रेम पुष्प श्रृंगार मिले ||
परिभाषा दे तू अथाह प्यार की
        तो इस जीवन का सार मिले |
सिमट गयी जो शिव जटा में ...
         उस गंगा को भी धार मिले ||

--- कविराज तरुण

तू मेरा सुन्दर सपना

 तू मेरा सुन्दर सपना

तेरे मधुर लबो का मधुरस पा लूं ...
केश - सृजन की छाया |
जबसे देखा तेरे चक्षु - किरण को ...
तू इस मन - मंदिर में समाया ||
यौवन का तू अतुलित साधन ...
चाल की न कोई उपमा |
पुष्प सरीखी काया है ...
तू है मेरा सुन्दर सपना ||

--- कविराज तरुण


Tuesday 16 July 2013

SMS को ही तार समझना

SMS को ही तार समझना ...
इसे ही मेरा प्यार समझना ...
VEDIO CALL बड़ी महंगी है ...
आ जाये कभी तो आभार समझना ...
वैसे तो INTERNET PACK डला है ...
हम LIVE CHAT कर सकते हैं ...
बिना मिले ही WHATSAPP पे हम ...
घंटो DATE कर सकते हैं ...
MISSCALL करें जब एक दफा हम ...
समझ लेना याद तुम्हारी आती है ...
दो बार करू मै तो SIMPLE है ...
तू दिया और हम बाती हैं ...
और बार बार अगर करता हूँ ...
तो समझ लेना BALANCE नहीं कुछ बाकी है ...
दो बातें लिखकर भेजूंगा...
तुम दो को चार समझना  ...
कभी कभी SMILEY से ही ...
तुम मेरे मन के उदगार समझना  ...
SMS को ही तार समझना ...
इसे ही मेरा प्यार समझना ...

--- कविराज तरुण

Monday 8 July 2013

नींद से लिपटी ये बोझल आंखें


नींद से लिपटी ये बोझल आंखें

नींद से लिपटी ये बोझल आंखें ...
और चेहरे पर उदासी भरी ये शिकन |
कुछ तो फरेब कुदरत का ...
कुछ इस दुनिया का सितम ||
न ख्वाबो का दस्तक देना ...
न उम्मीदों की कोई पहल |
बस यूँही गुजरता लम्हा ...
न कोई हरकत न कोई हलचल ||
हवा की नरमी का एहसास नदारद...
न उड़ते पंछी न कोई सरहद |
पानी की छींटे भी न कर सकेंगी ...
खो जाने की खुद में ऐसी है फिदरत ||
बस एक थकान उम्र दर उम्र बढती...
बंद कमरों में सिमटती कदमो की आहट |
झूठी रौनक झूठी दुनिया झूठे चेहरों की मुस्कराहट ...
खुद से पूछो की हम कहाँ हैं ? कहाँ है हमारी जीने की आदत ||

--- कविराज तरुण            

Wednesday 3 July 2013

DEVTAO KA PRAKOP


देवताओ का प्रकोप

हाहाकार से गूंजित ...
उत्तराखंड की भूमि ... और उसपर
ये खुलेआम सियासत
उठ जाते हैं ये हाथ अक्सर ...
वोट मांगने के लिए
या फिर विजयी चिन्ह "V"  इंगित करने के लिए
पर
दुर्भाग्य !
ये हाथ कभी बढे नहीं
मदद करने के लिए
उसके लिए तो हमारे जवान हैं बस ........
ये तो दौरा कर सकते हैं केवल
और जायजा ले सकते हैं
क्यूंकि इनके पास दिल नहीं
केवल
सरकारी ये विमान है बस .......
जब भक्ति की भूमि पर
होंगे हनीमून बारम्बार ...
VIP कोटे से होंगे
दर्शन अपार ...
आज फैला
इस पीड़ित भूखंड पर
अज़ब है व्यापार  ...
रोटी पानी को भी अब
असहाय
है कितना लाचार ...
जब ऐसे पाप होते रहेंगे
इस पुन्य धरोहर पर
तो कैसे
न टूटेगा कहर
कैसे न टपकेगी
आसमान से
मौत .........
कैसे न होगा
देवताओ का प्रकोप |||

--- कविराज तरुण     

Saturday 29 June 2013

dard bhari ek ghazal


सिर्फ एक ज़ख्म नहीं दिल में कुछ दरार भी है...
जवाब दूंढते हुए मन में कुछ सवाल भी हैं...
तू साथ दे न सकी मै साथ ले न सका
आरज़ू आज भी हैं वो ख्वाब आज भी हैं
झूमते साज सी थी तेरी हर बात सनम
आज भी गूंजती है तेरी आवाज़ सनम
मै सुन के सुन न सका तू कह के कह न सकी
वादे इतने किये पर टिकी रह न सकी
इन्ही वादों की कसक में छुपा प्यार भी है |
सिर्फ एक ज़ख्म नहीं दिल में कुछ दरार भी है ||
मै शाम मय से बात ये करता रहा
साथ जब उसका गया तो तू साथ चलता गया
न सोच तू ही उसे न मुझे सोचने दे
नशे में आज मुझे जी भर के डूबने दे
तुही सफ़र है मेरा तुही सवार भी है |
सिर्फ एक ज़ख्म नहीं दिल में कुछ दरार भी है ||
संग तेरे सोचा था हम घर बसायेंगे
तू तो अब दूर गयी हम कहाँ जायेंगे
रूठे हालात हमें हर घड़ी रोकते हैं
रूखे ज़ज्बात हमें हर घड़ी कोसते हैं
भूल जाता मै तुझे मगर ये हो न सका
वफ़ा में लिपटा हुआ बाकी बचा करार भी है |
सिर्फ एक ज़ख्म नहीं दिल में कुछ दरार भी है ||
जवाब दूंढते हुए मन में कुछ सवाल भी हैं ||

--- कविराज तरुण     

Friday 28 June 2013

CHALO US OR PANCHI (dedicated to one who believe in love marriage)


चलो उस ओर पंछी आज नहीं डेरा यहाँ
वक़्त की साजिशो का आज फिर पहरा यहाँ
        कोई रश्मो के नाते घर में न आने देगा
        कोई रिवाजो के चलते हमें और ताने देगा
कोई झूठी शान में गर्दन घुमा लेगा
कोई अपने मान में सर झुका लेगा
        पर न समझेगा हमें न हमारी मोहब्बत को
        और तरसते ही रहेंगे हम खुदा की रहमत को
चलो उस ओर पंछी आज नहीं डेरा यहाँ
वक़्त की साजिशो का आज फिर पहरा यहाँ

 ---- कविराज तरुण

Monday 24 June 2013

kaviraj Tarun Forums

kaviraj Tarun Forums

meri shero shayri

Dont forget to appreciate  if you like this:

" पैदा होता नहीं जूनून कभी हाशिये तले ...
खुद से खुद को कमज़र्फ एक आवाज़ लगनी पड़ती है || "

============XXX============
" बड़े लिबास में सजकर आये हजारों लोग ...
बस एक मेरे यार की ही सादगी रही || "

============XXX============
आज फिर वो निकला और पीछे हुजूम था ...
आज फिर नज़र का टीका लगाया नहीं उसने ...

============XXX============
इतनी पी ली उनकी बेरुखी से बेदिली होकर
कि अब तो रोते भी हैं तो पैमाने छलक जाते हैं...

============XXX============
ना दस्तूर बदला ना रिवाज़ बदले |
ना हम बदले न आप बदले ||
प्यार करते रहे हम बिना स्वार्थ के ...
ना झूठे वादे तेरे ना ही ख्वाब बदले ||

============XXX============
होंटों से बयां होते नहीं हालात दिल के
हम जैसा पारखी मिलता है मुश्किल से
कोई आके लूट लेगा तेरी आँखों से मोती
ठगों के बाज़ार पहुचोगे जब मेरी महफ़िल से

============XXX
============

 किसी को दुआओं ने जिंदा रखा |
किसी को दवाओं ने जिंदा रखा |
था जिनके परो में उड़ने का दम |
उन्हें इन् हवाओं ने जिंदा रखा ||

============XXX============
खुदगर्जी भी खुद करो
हमदर्दी भी खुद करो ...
जवाब माँगों हमसे हर बात का
और फिर मर्जी भी खुद करो ।।

============XXX============
न तुम होती न गम होता...
ये मैला पन्ना भी कुछ कम होता ।
और भी मौसम हैं ये मै जान पाता ...
गर ये बारिश का महीना कुछ कम होता ।।

============XXX============
मालूम नहीं था वो दिल है तेरा
जिसे कबसे हम पत्थर समझ रहे थे |
फिर उन् रकीबो ने आईना दिखा दिया
वर्ना तुमको हम खुद से बेहतर समझ रहे थे ||

============XXX============
 सजा प्यार की वो आज भी मुझे देता है साहिब
और मै खुद से पूछता हूँ मेरा गुनाह क्या है
वो खुद को समझ न सकी मुझे क्या समझेगी
सवाल फिर भी वही मेरा गुनाह क्या है 

============XXX============
न गिला उनसे , न गिला रब से ...
अपने दामन में ये आग खुद लगायी हमने |

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वक़्त को हमारी कदर उस वक़्त हुई
जब वक़्त देखने को भी वक़्त न था
और वो आये हाथ थामने बड़े शौक से मगर
दिल धड़क तो रहा था पर इसमें अक्स न था 

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शायद यही दस्तूर था
उनका जाना एक सच
और उनका आना मेरे मन का फितूर था 

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 यहाँ दिल ज़ख्म की तासीर बना है
और वो सवाल भी पूछते हैं तो दिल तोड़कर

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बदनाम हुए तो अच्छा है कुछ नाम तो हुआ ।
उनकी गली मे अपना भी कुछ मुकाम तो हुआ ।
माना कि हासिल नही हुआ कुछ भी ए दोस्त ।
पर आशिको मे अपना भी कुछ एहतराम तो हुआ । 

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आज फिर वो निकला तो पीछे हुजूम था ।
अपने चाँद को सितारों से अलग पाया नही मैने ।।
जी मे था बादलों से ढक दूँ ये सारा आसमां ।
पर कुछ सोचकर ये परदा फलक पर गिराया नही मैने ।।

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 कुछ बातें कुछ हसरत कुछ एहतराम बाकी है ।
पीने दो अभी हमें दोस्तों... ये जाम बाकी है ।
फरमाओ अपनी दास्तान और कुछ हमारी भी सुनो ।
ज़ज्बे-हयात की यहाँ अभी शाम बाकी है ।।

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आज फिर देखा तुम्हें किसी और के साथ जानिब ...
जब तक हमारे थे , तुम कितने प्यारे थे ।

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 जज्बात बढ़ चले हैं जज्बात से मिलने ...
ये पाँव चल पड़े हैं अब आप से मिलने ...
अपनी आँखों को जरा आहिस्ता बंद कर लो ।
मेरे ख्वाब उड़ पड़े हैं तेरे ख्वाब से मिलने ।।

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आज फिर देखा उन्हें बहती हवा के साथ ...
आज फिर कोशिश की हमने पर कुछ न आया हाथ ...


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न तुम होती न गम होता...
ये मैला पन्ना भी कुछ कम होता ।
और भी मौसम हैं ये मै जान पाता ...
गर ये बारिश का महीना कुछ कम होता ।।


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विगत दिनों से कल्पजगत मे व्यापक कुछ विस्तार हुआ ।
घर से शहर , शहर से देश , देखो अब संसार हुआ ।।
कठिन नहीं था स्वयं को पाना दुनिया की अफरा-तफरी मे ।
हर चेहरे को जब अपना माना तब सपना साकार हुआ ।।

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तू परिभाषा दे अथाह प्रेम की,
तो अविचल जीवन का सार मिले ।
सिमट गयी जो शिव जटाओं मे ,
उस गंगा को भी संसार मिले ।।
है नही गुजारिश सब पा लेने की ,
पर इतना तो अधिकार मिले ।
कि तुमको पलकों मे बंद करूँ ,
और सपनों मे तेरा प्यार मिले ।।


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सुना था हवाये भी गुनगुनाती हैं ......
तुम गये जबसे इसकी फिदरत बदल गयी ।।


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अगर वो जुर्म था साहिब , निगाहों मे जो शामिल था ।
बता फिर दिल मेरा सजा का हकदार क्यों है ??
हुआ सब खत्म हमारे बीच तनहा मन बचा केवल ।
आज भी इन किवाडो को तेरा इंतजार क्यों है ।।

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तू क्या जाने मेरे इश्क का मतलब ...
चोट नाजुक है आँखो से न दिखाई देगी ।
कितना चाहा है तुझे बयां ये कैसे करे ...
दिल की आवाज है ये, तुमको न सुनाई देगी ।।

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हुई सुबह तो हमें यकीन आया ...
ख्वाब-ए-ज़ंनत का आईना ज़रा कमजोर सा है ।।


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सिखाया उसने हमें हालात से समझौता करना ।
कभी जज़बात कभी अपने आप से समझौता करना ।
बदल न पाया खुद को हमें बदलने वाला ...
बताया उसने हमें हर बात से समझौता करना ।।


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---- kaviraj tarun