Wednesday 18 March 2015

तनहा रहा अकेला रहा

कल तक उनके दिलों का मेला रहा ।
आज तनहा रहा , अकेला रहा ।
बात कम हो गई , रात नम हो गई ।
होते होते मुलाक़ात खतम हो गई ।
मेरे सपने ही मुझसे जुदा हो गए ।
उनको खबर ही नही वो खुदा हो गए।
रूठ कर , टूट कर चल रहा हूँ अभी ।
थाम ले वो मुझे शायद आकर कभी ।
कलतक उनके बगीचे का फूल बेला रहा ।
आज तनहा रहा , अकेला रहा ।

कविराज तरुण

Sunday 8 March 2015

तुम और मै

मै कैसा हूँ ये जानता नही हूँ ।
शक्ल अपनी शायद मै पहचानता नही हूँ ।
एक मासूम दिल है और ज़रा सी मुस्कान ।
बहुत तनहा रहा और ख़ुशी से अनजान ।
तलाशता रहा उस चेहरे को जो मुझे अपनाये ।
जिसकी बाते मेरे मन को एक शुकून दे जाये ।
जो समझे मुझे और मेरी चाहत को ।
रंग भर दे जो जिंदगी में अपनी मोहब्बत के ।
तुम ही हो अब मेरे ये तलाश कर दो पूरी ।
सारी दुनिया फरेब है और तुम ही जरुरी ।
साथ दो बस मेरा बहुत रो चूका हूँ ।
दुसरो की ख़ुशी में बहुत कुछ खो चूका हूँ ।
अब तुम पर यकीन है तुमपर ऐतबार है ।
इस जिस्म दिल धड़कन को बस तुमसे प्यार है ।

कविराज तरुण

Sunday 1 March 2015

बेताबी

दिल बड़ा बेताब सा है
ये सच है या एक ख्वाब सा है
तुम बन गए हो मीत मेरे
कुछ कुछ ये नशा शराब सा है
मै अंजुमन मे खो गया हूँ शायद
तेरा असर महकते किसी गुलाब सा है
प्यार की बारिश मे भीग के ये जाना
मज़ा ज़िन्दगी का मेहताब सा है
कविराज तरुण

चितचोर

नाच रहा मन मेरा बनके चितचोर
चेहरा तेरा छा गया है मेरे सबओर
भींग रहा तन बदन ऐसे छोर छोर
जैसे बारिश की बूंदों मे घूमता मोर
जाने कैसे कब कहाँ तूने बाँधी दिल की डोर
शाम की खबर नही ना रात ना भोर
जिधर नज़र ये पड़े तू दिखे चहुओर
चल ही नही पा रहा अब मन पर जोर
तेरी बातों के सिवा जग में लगे सब शोर
कर न सकू तेरे अलावा अब कही भी गौर
खुद की खबर नही न डगर न ठौर
बन गए हो मीत मेरे प्रीत घनघोर
नाच रहा मन मेरा बनके चितचोर
चेहरा तेरा छा गया है मेरे सबओर

कविराज तरुण