Monday 18 November 2013

याद आने लगे



फूल गुलशन के फिर मुस्कुराने लगे...
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ...
हाँ मुमकिन है ख्वाबो में इश्क करना,
नींद आँखों में हम अपने सजाने लगे ।

चाँद की रोशिनी मेरे घर पर पड़ी ...
रातरानी की डाली पर कलिया खिली...
हम उन्हें पास अपने बुलाने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

दुपहरी में अपनी मुलाक़ात में...
लम्हे लम्हे में शामिल हर बात में ...
याद है कैसे वो शर्माने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

एक पल वो भी था, थे खफा वो बहुत...
पास तो खूब थे पर, थे जुदा वो बहुत...
रूठते वो गए हम मनाने लगे ,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

इस गलीचे पर कदमो की आहट को लेकर...
अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट 
को लेकर...
प्यार की नई दुनिया हम बसाने लगे,
शाम ढलने लगी वो याद आने लगे ।

- कविराज तरुण

कोई तो रोको


कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।
गाँधी सुभाष भगत सिंह...
    हर हस्ती पिघल रही है ।।
इस वतन का कोना-कोना
    बना राजनीति का खिलौना
मौन है क्यूँ राजा...
    जनता उबल रही है ।
कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।।
हो पंजाब सिंध मराठी
    या क्षत्रिय ब्रह्म या भाटी
जाति धरम से हिन्द की...
    अब आत्मा बिखल रही है ।
हिमखंडो का हिमालय
    बंगाल की या खाड़ी...
पूरब की सरजमीं हो
    या फिर हो कन्याकुमारी...
विभक्त टुकड़ो में भारती की...
    इज्जत उछल रही है ।
और साख इस वतन की ...
    देखो फिसल रही है ।।
कोई तो रोको ...
    मेरी बस्ती जल रही है ।
गाँधी सुभाष भगत सिंह...
    हर हस्ती पिघल रही है ।।


--- कविराज तरुण





रंग तिरंगे का


रंग तिरंगे का एक दिन पूछेगा हमसे...

खुद को किस रंग में हमने रंग लिया है

सफेदपोशो ने देखो सफेदी को इसके

नित किस तरीके से मैला किया है

खून खराबे ने केसरिया पट्टी को इसके

आज बदलकर रक्तरंजित किया है

रंग हरा है इसमें पर हरियाली कहाँ है

चक्र खामोश है खुशहाली कहाँ है

ये तो लहराता है पर न कह पाता है

राष्ट्र-सम्मान का ये क्या सिलसिला है

रंग तिरंगे का एक दिन पूछेगा हमसे...

खुद को किस रंग में हमने रंग लिया है


--- कविराज तरुण




Tuesday 12 November 2013

वाह वाह मेरे आसाराम


सुबह भजन शाम को जाम ...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
धर्म संस्कृति हुई बदनाम ...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
कथनी करनी में भेद के पोषक !!
बाल-बालाओं के आदि शोषक !!
विकृत मनोवृति के साक्षात द्योतक !!
समाज निर्माण के गति अवरोधक !!
कुकर्मी कषुलित कर दिया नाम...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
धर्म का कर दिया काम तमाम...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
काम क्रोध मद लोभ के साधक !!
सभ्य सोच के अतुलित बाधक !!
दुष्कर्म चरित्र नवरस मादक !!
संकीर्ण बुद्धि और कुकृत्य व्यापक !!
गलती का भुकतो अंजाम...
वाह वाह मेरे आसाराम ।
बुरे कर्म का बुरा परिणाम ...
वाह वाह मेरे आसाराम ।

-कविराज तरुण