Thursday 31 January 2013

देशवीर गाँधी - गाँधी जी की पुण्यतिथि (३०- जनवरी ) पर उनको समर्पित एक रचना



गाँधी जी की पुण्यतिथि (३०- जनवरी ) पर उनको समर्पित एक रचना ---



देशवीर गाँधी 

देश अमृत भूमि के वे चाल हँसक नीर थे |
चले आंग्ल - बाण जो थे सामने अतिक्षीर्ण थे ||

अंश आतुर अबतलक है वो जो ऐसे वीर थे |
कंस के तो कान्ह थे रावने रघुबीर थे ||

श्रद्ध इस समाज के वे आज के कबीर थे |
लहर सौदामिनी की ज्योति अतिशीर थे ||

महकती फुलवारी थे वे दहकती जंजीर थे |
आत्मा तो धीर थी पर मन से वे गंभीर थे ||

दुबली पतली काया थी पर रस भरे शरीर थे |
हम गांधी उनको क्या कहें , वो आंधी थे बलवीर थे ||


  --- कविराज तरुण 

Wednesday 30 January 2013

यमराज क्यों लेट है ? (in jpg & text)


यमराज क्यों लेट है ?

भगवान् इस समय मै बिस्तर पर पड़ा हूँ |

हर तरफ मै डाक्टरों से घिरा हूँ  |

इंतज़ार मे हूँ मेरी बोली कब लगेगी  |
और ये बॉडी मेरी अर्थी पर कब चड़ेगी  |
पर पूछता हूँ भगवन यमराज क्यों लेट है  |
क्या सुनामी मे उसको मिल गयी बहुत भेंट है  |
और अब कसकर भर गया तेरा पेट है  |
फिर बताओ भी तुम क्यों बंद तेरा गेट है  |
सुई पर सुई ये नर्सें चुभा रही है  |
उधर स्वर्ग की यादें लुभा रही है  |
देखना है इन्द्र का दरबार कैसा है  |
क्या वहाँ पर भी राज़ करे पैसा है  |
और उनकी हुकूमत वहाँ कैसी चल रही है  |
क्या वहाँ पर भी सीता यूँही जल रही है  |
और देखना है मुझको तेरा क्या हिसाब है  |
क्या तू भी तकिये के नीचे छुपाता किताब है  |
तू भी सचिन का क्या हुआ दीवाना है  |
या ब्रिटनी का सपनो मे आना जाना है  |
क्या तुझे डियो ड्रीन्ट की  लगती जरुरत है  |
या ऐश्वर्या सी वहाँ कोई खूबसूरत है  |
हाँ नेपोलियन को तुने बताया किधर है  |
मुशर्रफ का आने वाला कब नंबर है  |
और शिव का क्या अब भी गिरीशिला पर वास है  |
या एयरकंडीशनर घर उनके पास है  |
और उनकी नंदी क्या उतनी ही मोटी है  |
या गणपति के चूहे की पूछ हुई छोटी है  |
 और ब्रह्मा कमल पर युही विराजमान हैं  |

या 
वहाँ पर भी
 कोई स्लीप्वेल  का सामान है  |


सवाल हैं अनेक पर इंतजार अब एक है  |

बता यमराज  तुने क्यों की लेट है  |
------------ कविराज तरुण

Sunday 13 January 2013

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर : मेरे आदर्श ( I follow Rashtrakavi 'Dinkar')



( अपने अनुभव के आधार पर और उपलब्ध जानकारी के अनुसार  अपने आदर्श कवि को समर्पित एक लेख ...)


राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर : मेरे आदर्श 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर न जाने कितने व्यक्तियों के जीवन आदर्श होंगे | गर्व के साथ मै भी उन्ही लोगो में शामिल हूँ | बिहार के बेगुसराय ( तत्कालीन मोंघयार ) जिले के एक छोटे से गाँव में सन १९०८ में २३ सितम्बर को दिनकर साब ने जन्म लिया और अपनी वाचस्पति हिंदी सृजन की अनमोल कृतियों से न सिर्फ छायावाद युग को एक नयी दिशा दी अपितु गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए हिन्दुस्तान को अपनी पंक्तियों से एक नया ओज प्रदान किया | यूँ तो दिनकर जी महात्मा गांधी के विचारों से खासे प्रभावित रहे जो उनकी रचनाओ " बापू " और " हे राम ! " से स्पष्ट होता है , परन्तु फिर भी वो उग्र युवाओं के मस्तक पर तिलक लगाते रहे |
१९२८ में गुजरात के बारडोली में सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा संचालित "सत्याग्रह " ने उन्हें काव्य भागीदारी के लिए प्रेरित किया तत्पश्चात उनकी प्रथम रचना " विजयी सन्देश " का आगमन हुआ और उसके बाद दिनकर जी ने पीछे पलट के नहीं देखा |
हालाँकि " विजय सन्देश " से पहले उनकी कवितायेँ पटना की पत्रिका " देश " और कन्नौज की " प्रतिभा " में अक्सर छपती रही | दिनकर साब अपने वीर रस के कारण युवाओं में बहुत प्रभावशाली रहे | हिंदी विशेश्यग्यों के अनुसार कवि भूषण के बाद वीर रस का इतना प्रभावशाली प्रयोग दिनकर जी की कविताओं में ही विद्यमान है परन्तु फिर भी समय का खेल देखिये दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार, जो कि साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार है , श्रृंगार रस से उत्प्रेरित रचना " उर्वशी " के लिए मिला | गद्य साहित्य में " संस्कृति के चार अध्याय " लिखने वाले दिनकर जी को साहित्य अकादमी से पुरस्कृत किया गया | पद्म - भूषण से सम्मानित दिनकर जी ने  ३ अप्रैल १९५२ से लेकर २६ जनवरी १९६४ तक लगातार तीन बार संसद द्वारा मनोनीत सदस्य के रूप में पदभार संभाला |
वैसे तो दिनकर जी की समस्त रचनाओ पर प्रकाश डालना समुद्र को लांघने के सामान है परन्तु फिर भी यहाँ पर अपनी पसंद कि कुछ रचनाओ का वर्णन करना चाहूँगा जो दिनकर जी ने लिखी हैं |

काव्य रचनाएँ :

१९२८- विजय सन्देश
१९२९- प्राणभंग
१९३५- रेणुका
१९३८- हुंकार
१९३९- रसवंती
१९४६- कुरुक्षेत्र  , धुप - छांह
१९४७- सामधेनी
१९४७- बापू
१९५२- रश्मिरथी
१९५४- नीम के पत्ते
१९५७- सींप और शंख
१९६१- उर्वशी
१९६३- परशुराम कि प्रतीक्षा
१९७०- हारे को हरिनाम

गद्य रचनायें :

१९४६- मिटटी की ओर
१९५२- अर्धनारीश्वर
१९५४- रेती के फूल
१९५६- साहित्य के चार अध्याय
१९५८- काव्य की भूमिका
१९६८- हे राम !
१९७३- दिनकर की डायरी

अनुवाद :

रविन्द्र नाथ टैगोर को अपना आदर्श मानने वाले दिनकर जी ने " मेघदूत " का सफल अनुवाद किया , साथ ही टैगोर जी की १०१ कविताओं को " रबिन्द्र नाथ की कवितायें " शीर्षक से अनुवादित करने में अन्य कवियों के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | इसके अलावा डी . एच . लारेंस की लिखी अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी रूपांतरण " आत्मा की आँखें " भी समाज के सामने प्रदर्शित किया |

आलोचना :

हिंदी साहित्य के अनुशासित सेवक और ज्ञाता रहे दिनकर जी ने समय समय पर अपनी आलोचना के स्वर भी प्रस्फुटित किये | जिनमे से कुछ प्रमुख रचनायें हैं :
१- साहित्य और समाज
२- चिंतन के आयाम
३- कवि और कविता
४- संस्कृति भाषा और राष्ट्र

स्मृतियाँ :

रामधारी सिंह दिनकर ने तीन प्रमुख स्मृतियाँ लिखी जो इस प्रकार है :
१- श्री अरबिंदो : मेरी दृष्टि में
२- पंडित नेहरु और अन्य महापुरुष
३- स्मरानांजलि
४- खगेन्द्र ठाकुर द्वारा लिखित : "रामधारी सिंह दिनकर :: व्यक्तित्व और कृतित्व "
राष्ट्रीयता और ओज के कवि दिनकर जी ने २४ अप्रैल १९७४ को अपना देह त्याग दिया परन्तु उनकी रचनायें चिरकाल तक हमें ज्ञान बांचती रहेंगी |

अपनी एक रचना उनको समर्पित करना चाहूँगा :

" तुम प्रेणना के अगार , निश्चल पावन निर्झर धार |
  लेखनी तुम्हारी जैसे कृपान , तुम माँ धरती के सच्चे लाल || "

Note - In coming blog , i will focus on his famous work in Hindi Literature.
सूचना : अगले अध्याय में दिनकर जी की प्रमुख रचनाओ पर विश्लेषण किया जायेगा |

--- कविराज तरुण

Friday 11 January 2013

AAHWAN




आह्वान
शोक कैसा आज छाया तिमिर की गहराई में ;
आज स्वयं को खोजता क्यूँ तरुण निज परछाई में |
कल्पना में खो गया सत्य का स्वरुप अब क्यूँ ;
रोशिनी दिखती नहीं कोयला हुआ सब रूप अब क्यूँ ?
रुधिर क्यूँ बन गया है आज पानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??

मै नहीं मय बोलता है चहुओर अब तो ;
विपत्ति ने भी दिए पट खोल अब तो |
रश्मियों को दे दिया है क्यूँ निकाला ;
कृपाण तज क्यों हाथ में है मय का प्याला ?
बन गयी बस मोह की बेबस कहानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??

शूल ने देखा चमन को चाहतों से ;
फूल ये महका अमन की हसरतो से |
बिन शूल के क्या फूल संभव थे बताओ ;
तुम भी बन शूल क्यूँ न मुस्कुराओ ?
शूल के कारण नहीं क्या फूलों की निशानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??

क्षितिज छूने का अरमान धरती ने संजोया ;
बस इसलिए ही पर्वतों का बीज बोया |
और वो शिखर पर शीश निज ऊँचा किये हैं;
जिसपर गगन ने हाथ अपने रख दिए हैं |
पर नहीं क्यूँ आरोह सम्मत तेरी क्यूँ जिंदगानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??

        -------- कविराज तरुण  

Thursday 10 January 2013

बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे





बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे !

 बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!

 बाँधा नहीं क्यूँ तूने रेशम का धागा
 तभी उन वैशियों का पाप नहीं भागा
 जो भीख रो रोकर उनसे तूने न मानी
 तभी से शुरू हुई सारी कहानी
 ऐसे कथनो से शर्म नहीं तुझे आशाराम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!
 बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!

 सुबह गुजरता धरने में रात होती डिस्को में
 महामहिम के बेटे को राय दूंगा किश्तों में
 अपनी बहनों से आज तुम ये सवाल पूछो
 होती अगर वो बस में तो होता का हाल पूछो
 अरे मूरख ! क्यों महिलाओं को करते हो बदनाम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!
 बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!

 --- कविराज तरुण 

Monday 7 January 2013

some lines for "Road Safety Week"

Please follow these instruction while driving:
1- Use seat belt/ helmet while driving.
2- Never drive in influence of alcohol.
3- Use reflector jacket while riding bike.
4- Dont use cellphone on roads.
5- Be careful about the speed limits.
6- Follow traffic rules.

Remember:
" sadak par sadev suraksha ka dhyaan ho, aap bhi kisi kul ke deepak ho...
Kisi ke liye praan ho...."

Friday 4 January 2013

मंहगाई: एक व्यंग (Inflation)




मंहगाई

मंहगाई पर लगाम अभी विचाराधीन है ...
 क्या कहें ये सरकार बड़ी उदासीन है ...

 कंकरिया मार रही बाबुल की कोठी 
 खुद ही तुम बचा लो अपनी लंगोटी 
 सब्जी महंगी मसाला मंहगा महंगी है रोटी 
 बरात हुई घटकर आज मुट्ठी से छोटी 
 तेल है महंगा आज सस्ती मशीन है ...
 मंहगाई पर लगाम अभी विचाराधीन है ...

 गैस का सिलेंडर अभी और होगा मंहगा 
 कमर कस लो अपनी अभी बहुत कुछ है सहना 
 समौसे में आलू कम सब्जी में पनीर 
 अब तो बेशकीमती हुआ पीने का नीर 
 घर भी है मंहगा और मंहगी जमीन है ...
 मंहगाई पर लगाम अभी विचाराधीन है ...

 ऊपर से घोटालो का रोज है खुलासा 
 फिर हम खुशहाली की कैसे करे आशा 
 नेता सारे व्यस्त हैं नोट छपवाने में 
 चप्पल घिसते जा रहे हैं नौकरियां पाने में 
 अर्थव्यव्स्थ्ता पर चंद लोग एक अरसे से आसीन है ...
 मंहगाई पर लगाम अभी विचाराधीन है ...
 क्या कहें ये सरकार बड़ी उदासीन है ...

   ---- कविराज तरुण 





Wednesday 2 January 2013

एक शपथ : समाज की सोच बदलो

"हमने लोगो को इस दुष्कर्म के बारे में बात करते बहुत सुना , सड़क से संसद तक हंगामा ही हंगामा पर क्या हम अपनी सोच बदलने के लिए तैयार हैं|

एक सख्त क़ानून तो जरूर बनना चाहिए पर उसे भी जरुरी है समाज में फैली उस सोच को बदलने की जो नारी को केवल भोग की वस्तु समझता है |

आओ हम सब इस नए साल पर शपथ ले कि हम इस सोच को बदलेंगे..."


कुछ पंक्तियाँ इसी परिपेक्ष्य में समर्पित कर रहा हूँ :


एक शपथ : समाज की सोच बदलो 

 दिल में एक घाव देकर चला गया बारह 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 
 ये सफेदपोश हमें युंही नचाएंगे 
   लाख धरने करे हम पर ये न शर्मायेंगे 
 और युही मिल न सकेगा सच को किनारा 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 

 वो बिलख बिलख कर अपनी दास्ताँ बताती रही 
   संसद से सड़क तक उसकी आवाज़ आती रही 
 पर आया न कोई कानून इस वैशी बीमारी का
   सरकार करती है नाटक अपनी लाचारी का 
 वो कहती है आसमान से बनकर सितारा 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 

 जब उठी है आवाज़ तो रुके न इसबार देखो 
   कितनी बहने कर रही हैं हम सभी से पुकार देखो 
 एक सम्मान एक न्याय की ये भी अभिलाषी हैं 
   न पुरुष है राजा और न नारी कोई दासी है 
 कम से कम व्यापक तो करो अपनी सोच का पिटारा 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 

 जब हर घर में नारी का सम्मान होगा 
   तब इन् अपराधो से निपटना आसान होगा 
 और ऐसी हरकत का मृत्युदंड जब इन्साफ होगा 
   तभी माँ के मस्तक से ये दाग साफ़ होगा 
 नए साल पर "तरुण" ये शपथ लो दोबारा 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 

 --------- कविराज तरुण