Monday 27 March 2017

ग़ज़ल- कर रहा हूँ

रदीफ़ - कर रहा हूँ
काफ़िया - अन
बहर 122 122 122 122

उजाला रहे ये जतन कर रहा हूँ ।
सवेरे सवेरे हवन कर रहा हूँ ।।

मुख़ातिब अ-धेरा ब-सेरा मुनासिब ।
यही सोच खुद को दफन कर रहा हूँ ।।

रिवाज़ो ज़रा लाँघने दो जजीरा ।
जलाकर जवानी तपन कर रहा हूँ ।।

बड़ी दूर जाना घने काम करने ।
मशालों से रौशन चमन कर रहा हूँ ।।

तरुण छोड़ दो अब ख-यालो मे' रहना ।
जमी पर सितारा चलन कर रहा हूँ ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Saturday 25 March 2017

अलफ़ाज़ 1

लहजो में तौलकर अल्फाज़ो को रखिये
एक उम्र गुजरती है इज्जत कमाने में

खाली पड़े मकां में कभी नूर भी बरसे थे
एक चिंगारी ही काफी है घर को जलाने में

कहते हैं सब्र को अक्सर कड़ा इम्तेहान देना पड़ता है
कई कोस चलना पड़ता है बच्चों को चलना सिखाने मे

गर कोई करे मदद तो उसका एहतराम जरुरी है
एक जुगनू भी है काफी अँधेरे को मिटाने मे

चलो कोई ऐसा धर्म भी चलाये जहाँ इंसान मजहब हो
बड़ा मुश्किल नज़र आता है कोई रस्ता सुझाने मे

कविराज तरुण 'सक्षम'

Wednesday 22 March 2017

भोजपुरी चाचा चाची लाय दा

चाचा ..चाची लाय दा हमके
होए बड़ी मेहरबानी
तू तो साठीयाइल बा बुढ़ऊ
पीछे छुटल जवानी
चाचा
लाय दा तू चाची ..हो

अरे बच्चन का कब आई नंबर
जब तुंही हा घर में कुंवारा
एक बित्ता की दाढ़ी लइके
तू तनिको नही लजाला
चाचा
लाय दा तू चाची.. हो

चाचा ..चाची लाय दा हमके
होए बड़ी मेहरबानी
तू तो साठीयाइल बा बुढ़ऊ
पीछे छुटल जवानी
चाचा
लाय दा तू चाची ..हो

जल्दी खोजा बुढ़िया कौनो
जो दिखत हो कमसिन सयानी
खेतन में हल कैसे जोतिबा
जब सूखे भीतर का पानी
चाचा
लाय दा तू चाची ..हो

इंटरनेट का चक्कर छोड़ा
न होइए कौनो सेटिंग
पाँव कबर में लटक गए हैं
करते करते वेटिंग
चाचा .. छोड़ दा ई मनमानी

चाचा
लाय दा तू चाची.. हो

चाचा ..चाची लाय दा हमके
होए बड़ी मेहरबानी
तू तो साठीयाइल बा बुढ़ऊ
पीछे छुटल जवानी
चाचा
लाय दा तू चाची ..हो

Tuesday 21 March 2017

भोजपुरी जिंदगी एक सजा

जिंदगी एक सजा, बन गइल बा
तोहरा के देखिल ,बस ई कमी बा
जिंदगी एक सजा, बन गइल बा
तोहरा के देखिल, बस ई कमी बा

जिंदगी एक सजा ,बन गइल बा

ऐके मिटावे खातिर , तनिका तू आवा
संगे मुस्कुरावे खातिर , तनिका तू आवा

जिंदगी एक सजा, बन गइल बा
तोहरा के देखिल ,बस ई कमी बा

जिंदगी एक सजा, बन गइल बा

इहर ..हम हई अधूरा , ओहर..तू हउ अधूरी(२)
मिलन की भईल बा , सब ख्वाहिश अधूरी(२)

लावा ..कदमो मा रच्ची तू जमीं
लावा ..सावन के संगे तू नमी
तोहरे बिना ... हो
तोहरे बिना हम
जी न सकी है
आवा ..सूरज से लइके रोशिनी
आवा ..चंदा से लइके चाँदनी

लावा ..हमके तनी तू जिंदगी(२)
जिंदगी
जिंदगी
जिंदगी...हो

जिंदगी एक सजा, बन गइल बा
तोहरा के देखिल ,बस ई कमी बा
जिंदगी एक सजा, बन गइल बा

जिंदगी एक सजा ,बन गइल बा

कविराज तरुण

Sunday 19 March 2017

शहरे लखनऊ

ये शहरे लखनऊ है
ज़रा एहतराम करिये
बाहों में इसको भरके
खुशियां तमाम करिये

हिंदी से ये बना है
उर्दू मे ये खिला है
लफ्ज़ो में है सलीखा
यहाँ प्यार सिलसिला है

आके ज़रा यहाँ पर
मदहोश शाम करिये
ये शहरे लखनऊ है
ज़रा एहतराम करिये

बोली है अवधी मीठी
लब पर बसा है 'भईया'
आँखों में इसकी खोजो
भूला हुआ भुलईया

मुख़्तार है हुसन का
'हज़रत महल' नज़ारा
गोमती के तट पर
प्रेमी युगल किनारा

'उमराव' की है महफ़िल
झुककर सलाम करिये
ये शहरे लखनऊ है
ज़रा एहतराम करिये

अंदाजे हो बयां या
अल्फ़ाजे गुफ्तगू हो
अहदे अदब की ख़्वाहिश
चैनो-अमन की आरजू हो

शामें रूहानी 'गंजिंग'
सुबहे रूमानी कर लो
नवाबी शहर मे तुमभी
ज़रा ताज-पोशी कर लो

रंगीन है शहर ये
कुछ इंतजाम करिये
ये शहरे लखनऊ है
ज़रा एहतराम करिये

कविराज तरुण