Sunday 27 October 2013

izhaar

 इज़हार ...

 वही भाव जो शून्य पड़े थे 
 छुपे थे झुरमुट की ओट में ...
 आज जूही के पीछे से चले आ रहे हैं |
 कहने को रखा है बहुत कुछ यहाँ पर ...
 पर ये अधर हैं की जैसे , एक - दुसरे पर सिले जा रहे हैं |
 ना समझा सकूँगा मै कुछ भी यहाँ पर ...
 कर्ण बाधिर हुए हैं , चेतन अचेतन की दशा पा रहे हैं |
 पर इस बेशरम दिल की हिमाकत तो देखो ...
 स्थिर कोषों में प्रेम की धुन , निरंतर गुनगुना रहे हैं |
 जब भी करता हूँ कोशिश
 बोल दूं दिल की बातें 
 शब्द मूर्छित हुए हैं , लफ्ज़ घबरा रहे हैं |
 आज फिर ना कहूँगा और चुप ही रहूँगा ...
 तुम खुद ही समझना , दो नैना मेरे जो समझा रहे हैं ||


 एक नज़्म -

 " वो सदियों पुराना रिवाज़ कुछ बदला नहीं है ..
   हर कहानी में मोहब्बत , और मोहब्बत में दुश्मन जगह पा रहे हैं |"


 --- कविराज तरुण