Sunday 28 July 2013

prabhubhakti prarthana

प्रभुभक्ति प्रार्थना

आओ तनिक तुम अर्चन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

नभ में प्रकाशित सूर्य हमारा ...
और पूर्णिमा में चंदा ये प्यारा ...
कर जोड़कर के अभिनन्दन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

है अन्नदाता अन्नपूर्णा माता ...
नश्वर जगत के शिव जी विधाता ...
लक्ष्मी सुयश कीर्तिवर्धन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

है आदिशक्ति माँ दुर्गा हमारी ...
मन में बसे हैं बांके बिहारी ...
ऋषि देवताओ का वंदन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

रज - रज को प्यारी विन्ध्याकुमारी ...
है संकट मोचन परम ब्रह्मचारी ...
रोली लगालो आज चन्दन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

ब्रह्मा चतुर्मुख कमल पर विराजित ...
विष्णुजी ने किया असुरो को पराजित ...
सदभावना का तुम आलिंगन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

सब कार्य सफल करती हैं वैष्णो माता ...
शुभ - लाभ के हैं गणपति जी दाता ...
सब त्याग कर आज कीर्तन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

आओ तनिक तुम अर्चन करलो |
प्रभुभक्ति के दर्शन करलो ||

--- कविराज तरुण

Wednesday 24 July 2013

ग़ज़ल : ना दिल चाहिए ना दुआ चाहिए

ग़ज़ल : ना दिल चाहिए ना दुआ चाहिए

ना दिल चाहिए ना दुआ चाहिए |
मुझ...को तो एहदे वफ़ा चाहिए ||
लोग कमज़र्फ हैं और फरेबी भी हैं |
मुझको मालिक तेरी आबिदा चाहिए ||
आईना पाक है , सिर्फ नीयत बुरी |
उनकी सूरत में सीरत फिजा चाहिए ||
अप्सरा नूर की कब थी ख्वाहिश हमें |
मुझको रहमत तेरी साहिबा चाहिए ||
सामने आ गए रूह के सिलसिले |
प्यार की रहगुजर में एक रज़ा चाहिए ||
ना गिला चाहिए ना सिला चाहिए |
आफरीन तेरे चेहरे पे शोखी अदा चाहिए ||
एक नज़र देख लो और असर देख लो |
मुझको नजरो नज़र में खुदा चाहिए ||
ना दिल चाहिए ना दुआ चाहिए |
मुझ...को तो एहदे वफ़ा चाहिए ||

--- कविराज तरुण


pyar ki paribhasha



प्यार की परिभाषा 
परिभाषा दे तू अथाह प्यार की 
          तो इस जीवन का सार मिले |
सिमट गयी जो शिव जटा में ...
          उस गंगा को भी धार मिले ||
चाह नहीं मै सब कुछ पा लूं ...
          पर इतना तो अधिकार मिले |
कि जब जब देखूं स्वप्न तेरा ...
          मुझे दिव्य अलौकिक प्यार मिले ||

तू आने वाले कल की सोचे ......... वर्तमान पर तेरा ध्यान नहीं |
ये जीवन किसने देखा है ............. है प्यार मेरा ये विज्ञान नहीं ||
तुम संग चलो बस बाहें डाले ...सब भूलके बंधन , भूल के ताले |
सूरज जब अपना चमकेगा .......... मिट जायेंगे ये बादल काले ||
खुशियों की भी एक दुनिया है ....गम का भी जिसमे हिस्सा है |
धुप छाँव में सिमटा - लिपटा ....... अपना ये सुन्दर किस्सा है ||
आ पास मेरे तू बैठ ज़रा ...................... जो होना है हो जायेगा |
यूं दूर सदा रहकर मुझसे .................... तू मुझे भूल न पायेगा ||

बस यही प्रार्थना प्रभु से मेरी ...
         तुझको आनंद सृजित संसार मिले |
जीवन के कोरे पृष्ठों पर ...
        अंकित अदभुत प्रेम पुष्प श्रृंगार मिले ||
परिभाषा दे तू अथाह प्यार की
        तो इस जीवन का सार मिले |
सिमट गयी जो शिव जटा में ...
         उस गंगा को भी धार मिले ||

--- कविराज तरुण

तू मेरा सुन्दर सपना

 तू मेरा सुन्दर सपना

तेरे मधुर लबो का मधुरस पा लूं ...
केश - सृजन की छाया |
जबसे देखा तेरे चक्षु - किरण को ...
तू इस मन - मंदिर में समाया ||
यौवन का तू अतुलित साधन ...
चाल की न कोई उपमा |
पुष्प सरीखी काया है ...
तू है मेरा सुन्दर सपना ||

--- कविराज तरुण


Tuesday 16 July 2013

SMS को ही तार समझना

SMS को ही तार समझना ...
इसे ही मेरा प्यार समझना ...
VEDIO CALL बड़ी महंगी है ...
आ जाये कभी तो आभार समझना ...
वैसे तो INTERNET PACK डला है ...
हम LIVE CHAT कर सकते हैं ...
बिना मिले ही WHATSAPP पे हम ...
घंटो DATE कर सकते हैं ...
MISSCALL करें जब एक दफा हम ...
समझ लेना याद तुम्हारी आती है ...
दो बार करू मै तो SIMPLE है ...
तू दिया और हम बाती हैं ...
और बार बार अगर करता हूँ ...
तो समझ लेना BALANCE नहीं कुछ बाकी है ...
दो बातें लिखकर भेजूंगा...
तुम दो को चार समझना  ...
कभी कभी SMILEY से ही ...
तुम मेरे मन के उदगार समझना  ...
SMS को ही तार समझना ...
इसे ही मेरा प्यार समझना ...

--- कविराज तरुण

Monday 8 July 2013

नींद से लिपटी ये बोझल आंखें


नींद से लिपटी ये बोझल आंखें

नींद से लिपटी ये बोझल आंखें ...
और चेहरे पर उदासी भरी ये शिकन |
कुछ तो फरेब कुदरत का ...
कुछ इस दुनिया का सितम ||
न ख्वाबो का दस्तक देना ...
न उम्मीदों की कोई पहल |
बस यूँही गुजरता लम्हा ...
न कोई हरकत न कोई हलचल ||
हवा की नरमी का एहसास नदारद...
न उड़ते पंछी न कोई सरहद |
पानी की छींटे भी न कर सकेंगी ...
खो जाने की खुद में ऐसी है फिदरत ||
बस एक थकान उम्र दर उम्र बढती...
बंद कमरों में सिमटती कदमो की आहट |
झूठी रौनक झूठी दुनिया झूठे चेहरों की मुस्कराहट ...
खुद से पूछो की हम कहाँ हैं ? कहाँ है हमारी जीने की आदत ||

--- कविराज तरुण            

Wednesday 3 July 2013

DEVTAO KA PRAKOP


देवताओ का प्रकोप

हाहाकार से गूंजित ...
उत्तराखंड की भूमि ... और उसपर
ये खुलेआम सियासत
उठ जाते हैं ये हाथ अक्सर ...
वोट मांगने के लिए
या फिर विजयी चिन्ह "V"  इंगित करने के लिए
पर
दुर्भाग्य !
ये हाथ कभी बढे नहीं
मदद करने के लिए
उसके लिए तो हमारे जवान हैं बस ........
ये तो दौरा कर सकते हैं केवल
और जायजा ले सकते हैं
क्यूंकि इनके पास दिल नहीं
केवल
सरकारी ये विमान है बस .......
जब भक्ति की भूमि पर
होंगे हनीमून बारम्बार ...
VIP कोटे से होंगे
दर्शन अपार ...
आज फैला
इस पीड़ित भूखंड पर
अज़ब है व्यापार  ...
रोटी पानी को भी अब
असहाय
है कितना लाचार ...
जब ऐसे पाप होते रहेंगे
इस पुन्य धरोहर पर
तो कैसे
न टूटेगा कहर
कैसे न टपकेगी
आसमान से
मौत .........
कैसे न होगा
देवताओ का प्रकोप |||

--- कविराज तरुण