Thursday 10 January 2013

बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे





बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे !

 बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!

 बाँधा नहीं क्यूँ तूने रेशम का धागा
 तभी उन वैशियों का पाप नहीं भागा
 जो भीख रो रोकर उनसे तूने न मानी
 तभी से शुरू हुई सारी कहानी
 ऐसे कथनो से शर्म नहीं तुझे आशाराम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!
 बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!

 सुबह गुजरता धरने में रात होती डिस्को में
 महामहिम के बेटे को राय दूंगा किश्तों में
 अपनी बहनों से आज तुम ये सवाल पूछो
 होती अगर वो बस में तो होता का हाल पूछो
 अरे मूरख ! क्यों महिलाओं को करते हो बदनाम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!
 बड़े सस्ते हैं इज्ज़त के दाम रे !
 लुटाएं सुबह शाम रे !!

 --- कविराज तरुण 

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