इज़हार ...
वही भाव जो शून्य पड़े थे
छुपे थे झुरमुट की ओट में ...
आज जूही के पीछे से चले आ रहे हैं |
कहने को रखा है बहुत कुछ यहाँ पर ...
पर ये अधर हैं की जैसे , एक - दुसरे पर सिले जा रहे हैं |
ना समझा सकूँगा मै कुछ भी यहाँ पर ...
कर्ण बाधिर हुए हैं , चेतन अचेतन की दशा पा रहे हैं |
पर इस बेशरम दिल की हिमाकत तो देखो ...
स्थिर कोषों में प्रेम की धुन , निरंतर गुनगुना रहे हैं |
जब भी करता हूँ कोशिश
बोल दूं दिल की बातें
शब्द मूर्छित हुए हैं , लफ्ज़ घबरा रहे हैं |
आज फिर ना कहूँगा और चुप ही रहूँगा ...
तुम खुद ही समझना , दो नैना मेरे जो समझा रहे हैं ||
एक नज़्म -
" वो सदियों पुराना रिवाज़ कुछ बदला नहीं है ..
हर कहानी में मोहब्बत , और मोहब्बत में दुश्मन जगह पा रहे हैं |"
--- कविराज तरुण
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