Wednesday 5 November 2014

बेवजह

अपनों की भीड़ मे, मुझे भूल जाना बेवजह ।
मै हँसता सा दिखूँ , तुम रुलाना बेवजह ।
बाँध कर रखा है मुझे, मेरे ज़ज्बातो की कसम ।
प्यार गैरों के लिए, मेरी किस्मत मे बस सितम ।
करूँ जो मै शिकायत, तो नसीहत हर कदम ।
तोड़ दे दिल मेरा अब, कर दे एक ज़रा सा रहम ।
प्यार का अब ठिकाना , क्यों बनाना बेवजह ।
अपनों की भीड़ मे, भूल जाना बेवजह ।
था भरोसा इश्क पर, झूठा गुरूर था ।
बस नशे की रात सा, एक शुरूर था ।
उतर जाना थी फिदरत, नही तेरा कसूर था ।
मगर तुझको ही किस्मत, हमने माना जरूर था ।
बची इज्ज़त को महफ़िल मे, क्यों लुटाना बेवजह ।
अपनों की भीड़ मे, मुझे भूल जाना बेवजह ।

--- कविराज तरुण

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