देशद्रोही
खेद है अपनी इस काव्य अभिव्यक्ति पर
जो लिखनी पड़ रही है देशद्रोही शक्ति पर
मेरी सम्मत में देशद्रोह चर्चा का विषय नही
जो देशद्रोही है उसका मृत्यु ही विकल्प सही
पर...
असहिष्णुता पर ताल पीटने वाले सब ध्यानी कहाँ है ?
पुरस्कार वापस करने वाले सब ग्यानी कहाँ हैं ?
इन देशविरोधी नारों की आवाज़ उनको आती नही
अरे ये देश है नादानों ... कोई धर्म या जाति नही
अब क्यों मुखस्वरो पर अकिंचन मौन प्रस्तुत
बोलने की सामर्थ्य है फिर रोड़ा कौन प्रस्तुत
या सियासत ने कलम को बाध्य साबित कर दिया है
या सियासत को कलम ने साध्य साबित कर लिया है
पर...
माँ भारती के विरोध मे वाणी मुखरित करने वालों
सभ्यता का पाठ अपने भाल मस्तक पर उतारो
राजनेता सेक लेंगे रोटियाँ हर बात मे
लेकिन तुम्हे रखना पड़ेगा जिह्वा को औकात मे
पक्ष और विपक्ष के तुम अधिनायक हो भले
पर देशभक्ति का कोई सूरमा ज्यूँ ही मिले
रक्तरंजित दृष्टि वाला दम ठोकता अपनी छातियों का
तो समझना अंत आया तेरा और इन साथियो का
फिर न हिन्दू सिख ईसाई या मुसलमान होगा ...
देशद्रोही का सिर्फ और सिर्फ कत्लेआम होगा ...
कविराज तरुण
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और कैलाश नाथ काटजू में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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