Wednesday 15 January 2020

ग़ज़ल - मुस्कुराना चाहिए

चार दिन की जिंदगी है मुस्कुराना चाहिए
जो मिले जैसा मिले अपना बनाना चाहिए

खामखाँ क्यों अश्क़ का ये भार पलको पे रहे
थामकर कंधा कोई आँसूँ बहाना चाहिए

फल अगर रसदार हो तो क्या लटककर फायदा
बहतरी तो है उसे अब टूट जाना चाहिए

माजरा ये है नही किसके लिए कब क्या किया
जब जरूरत हो सभी को आजमाना चाहिए

राज क्यों इतने छुपाकर जी रहे हो तुम मियाँ
कम से कम खुद को कभी तो कुछ बताना चाहिए

काम करने को बहुत हैं हो अगर तुझमे हुनर
अपनी किस्मत का लिखा खुद ही मिटाना चहिए

बेवजह जो शोर इतना कर रहे उनको तरुण
इक दफा खामोश रहकर भी दिखाना चाहिए

कविराज तरुण

No comments:

Post a Comment