दिव्यता का भव्यता का ये सहज प्रचार है
ये अलंकार है ये अलंकार है
भीड़ आई है तमस की सामने तो डर है क्या
सूर्य के हैं पुत्र सारे देह में दिया छुपा
शून्य से शिखर का ये सामरिक विचार है
ये अलंकार है ये अलंकार है
रंग लेके हाथ से ही छाप छोड़ने लगे
पृष्ठ था सपाट वृत्त-चाप छोड़ने लगे
दृश्य को बना अतुल विलाप छोड़ने लगे
ठंड में जमी कलम पे ताप छोड़ने लगे
आधुनिक प्रवेष का ये सौम्य सा सुधार है
ये अलंकार है ये अलंकार है
कविराज तरुण
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