Thursday, 29 October 2020

ग़ज़ल - मुहब्बत

#ग़ज़ल - #मुहब्बत
#कविराजतरुण
#साहित्यसंगमसंस्थान

मुहब्बत में कोई भी पेशकश तो की नही जाती
अगर हो फूल कागज का तो फिर खुशबू नही आती

बना लोगे बहाने तुम मगर ये हो न पायेगा
जहाँ पर दिल नही लगता वहाँ नींदें नही आती

जो अपने इश्क़ को ही मान बैठा है खुदा बिस्मिल
उसे हर चीज मिल जाये मगर कुछ भी नही भाती

ज़रा सा चाँद पर बादल का पहरा और छाने दो
मुसीबत के बिना तो दिल्लगी भी हो नही पाती

'तरुण' हर दीन मजहब से यही तुम बोल कर आना
मुहब्बत से किसी भी धर्म की इज्जत नही जाती

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