Tuesday 5 March 2024

ग़ज़ल - उसकी मासूमियत

ग़ज़ल - उसकी मासूमियत || कविराज तरुण || 7007789629

उसकी मासूमियत पर फ़िदा हो गए मेरे अल्फाज़ भी मेरे ज़ज़्बात भी
हम उसे देखकर ये कहाँ खो गए अब कटेगी नही मेरी ये रात भी

अब के मुस्का के तुमने जो देखा मुझे तो मै दिल को भला कैसे समझाऊंगा
मुझको डर है कहीं दिल ना दे दूँ तुम्हें कितने नाजुक हुए मेरे हालात भी

यूँ तो मुश्किल भरा है सफर ये मेरा आप आओगे तो रोशिनी आएगी
गूँज जायेगी ऐसे गली ये मेरी जैसे गलियों में गूंजे ये बारात भी

एक तो तू हसीं उसपे ऐसी अदा उसपे आवाज में मदभरा ये नशा
उसपे मौसम का ये जादुई पैतरा आज हद करने आई है बरसात भी

जबसे लिखने लगा हूँ तुम्हें नज़्म में सब मुबारक मुबारक ही कहने लगे
हो गए हैं रुहानी मेरे शेर भी हो गए हैं रुहानी ये नगमात भी

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