ग़ज़ल - लौट आऊंगा
© कविराज तरुण
अकेला चल रहा पर मै किसी दिन लौट आऊंगा
किसी मंजिल को हाथों में लिए बिन लौट आऊंगा
मुझे रिश्ते निभाना ठीक से आता नही है पर
मुझे जिसदिन लगेगा काम मुमकिन लौट आऊंगा
ये पंछी और लहरें भी तो वापस लौट आते हैं
मै तो इंसान हूँ उनकी ही मानिन लौट आऊंगा
ये बस्ती आम लोगों से भरी क्यों है बताओ तुम
अगर मुझको मिले कोई मुदाहिन लौट आऊंगा
मेरे आने से कोई भी नयापन तो नही होगा
न कोई गुल खिले ना ख़ार लेकिन लौट आऊंगा
No comments:
Post a Comment