Thursday, 24 April 2025

शहीद की पत्नी

हमारे ब्याह की बातें सभी क्या याद हैं शोना
पकड़ के हाथ बोला था जुदा हमको नही होना

चले थे सात फेरों में कई सपने सुहागन के
मिला था राम जैसा वर खुले थे भाग्य जीवन के

ख़ुशी के थार पर्वत सा हुआ तन और मन मेरा
मुझे भाया बहुत सच में तुम्हारे प्यार का घेरा

कलाई पर सजा कंगन गले का हार घूँघट भी
समझता अनकही बातें समझता मौन आहट भी

मगर जब सामने आया मेरे आतंक जिहादी 
हुई फिर खून से लथपथ हमारा प्यार ये शादी 

हुआ सिंदूर कोसो दूर मेरा छिन गया सावन
सुनाई दे रही चींखें बड़ा सहमा पड़ा आँगन

बुला पाओ बुला दो जो गया है छोड़ राहों में
सभी यादें सिसक कर रो रही हैं आज बाहों में

मगर चुपचाप ऐसा पाप हम अब सह नही सकते 
ख़तम इनको किए बिन और जिंदा रह नही सकते 

कविराज तरुण