कश्मोकश :
न जाने क्या लिखा है हाथ की लकीरों में
गिनती तो अपनी होती है बदनाम फकीरों में ||
न तो कर पाते हैं हाल - ए- दिल का बयां
न नज़र आता है उनके अन्दर का समां
कश्मोकश में जिल्ले इलाही है की सितम कौन करे
यही सोचकर ये फैसला लिया है हम मौन धरे
पर इन् बंद लफ्जों की कहानी इन् आँखों को सुनानी है
अब भला कैसे कैद करे इन्हें जंजीरों में
न जाने क्या लिखा है हाथ की लकीरों में
गिनती तो अपनी होती है बदनाम फकीरों में ||
वो सुबह कह के गया शाम तेरे नाम सही
बड़ा तल्लीन था मै हो जाए सब इंतज़ाम सही
पर वो शाम फिर नहीं आई
बड़ी बेशर्म है ये तन्हाई
कम्ज़र्ख खुद भी रोती है हमको भी रुलाती है
युही सिमट के रह जाएगी मेरी मोहब्बत इन् तस्वीरों में
न जाने क्या लिखा है हाथ की लकीरों में
गिनती तो अपनी होती है बदनाम फकीरों में ||
--- कविराज तरुण
No comments:
Post a Comment