Sunday 13 January 2013

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर : मेरे आदर्श ( I follow Rashtrakavi 'Dinkar')



( अपने अनुभव के आधार पर और उपलब्ध जानकारी के अनुसार  अपने आदर्श कवि को समर्पित एक लेख ...)


राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर : मेरे आदर्श 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर न जाने कितने व्यक्तियों के जीवन आदर्श होंगे | गर्व के साथ मै भी उन्ही लोगो में शामिल हूँ | बिहार के बेगुसराय ( तत्कालीन मोंघयार ) जिले के एक छोटे से गाँव में सन १९०८ में २३ सितम्बर को दिनकर साब ने जन्म लिया और अपनी वाचस्पति हिंदी सृजन की अनमोल कृतियों से न सिर्फ छायावाद युग को एक नयी दिशा दी अपितु गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए हिन्दुस्तान को अपनी पंक्तियों से एक नया ओज प्रदान किया | यूँ तो दिनकर जी महात्मा गांधी के विचारों से खासे प्रभावित रहे जो उनकी रचनाओ " बापू " और " हे राम ! " से स्पष्ट होता है , परन्तु फिर भी वो उग्र युवाओं के मस्तक पर तिलक लगाते रहे |
१९२८ में गुजरात के बारडोली में सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा संचालित "सत्याग्रह " ने उन्हें काव्य भागीदारी के लिए प्रेरित किया तत्पश्चात उनकी प्रथम रचना " विजयी सन्देश " का आगमन हुआ और उसके बाद दिनकर जी ने पीछे पलट के नहीं देखा |
हालाँकि " विजय सन्देश " से पहले उनकी कवितायेँ पटना की पत्रिका " देश " और कन्नौज की " प्रतिभा " में अक्सर छपती रही | दिनकर साब अपने वीर रस के कारण युवाओं में बहुत प्रभावशाली रहे | हिंदी विशेश्यग्यों के अनुसार कवि भूषण के बाद वीर रस का इतना प्रभावशाली प्रयोग दिनकर जी की कविताओं में ही विद्यमान है परन्तु फिर भी समय का खेल देखिये दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार, जो कि साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार है , श्रृंगार रस से उत्प्रेरित रचना " उर्वशी " के लिए मिला | गद्य साहित्य में " संस्कृति के चार अध्याय " लिखने वाले दिनकर जी को साहित्य अकादमी से पुरस्कृत किया गया | पद्म - भूषण से सम्मानित दिनकर जी ने  ३ अप्रैल १९५२ से लेकर २६ जनवरी १९६४ तक लगातार तीन बार संसद द्वारा मनोनीत सदस्य के रूप में पदभार संभाला |
वैसे तो दिनकर जी की समस्त रचनाओ पर प्रकाश डालना समुद्र को लांघने के सामान है परन्तु फिर भी यहाँ पर अपनी पसंद कि कुछ रचनाओ का वर्णन करना चाहूँगा जो दिनकर जी ने लिखी हैं |

काव्य रचनाएँ :

१९२८- विजय सन्देश
१९२९- प्राणभंग
१९३५- रेणुका
१९३८- हुंकार
१९३९- रसवंती
१९४६- कुरुक्षेत्र  , धुप - छांह
१९४७- सामधेनी
१९४७- बापू
१९५२- रश्मिरथी
१९५४- नीम के पत्ते
१९५७- सींप और शंख
१९६१- उर्वशी
१९६३- परशुराम कि प्रतीक्षा
१९७०- हारे को हरिनाम

गद्य रचनायें :

१९४६- मिटटी की ओर
१९५२- अर्धनारीश्वर
१९५४- रेती के फूल
१९५६- साहित्य के चार अध्याय
१९५८- काव्य की भूमिका
१९६८- हे राम !
१९७३- दिनकर की डायरी

अनुवाद :

रविन्द्र नाथ टैगोर को अपना आदर्श मानने वाले दिनकर जी ने " मेघदूत " का सफल अनुवाद किया , साथ ही टैगोर जी की १०१ कविताओं को " रबिन्द्र नाथ की कवितायें " शीर्षक से अनुवादित करने में अन्य कवियों के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | इसके अलावा डी . एच . लारेंस की लिखी अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी रूपांतरण " आत्मा की आँखें " भी समाज के सामने प्रदर्शित किया |

आलोचना :

हिंदी साहित्य के अनुशासित सेवक और ज्ञाता रहे दिनकर जी ने समय समय पर अपनी आलोचना के स्वर भी प्रस्फुटित किये | जिनमे से कुछ प्रमुख रचनायें हैं :
१- साहित्य और समाज
२- चिंतन के आयाम
३- कवि और कविता
४- संस्कृति भाषा और राष्ट्र

स्मृतियाँ :

रामधारी सिंह दिनकर ने तीन प्रमुख स्मृतियाँ लिखी जो इस प्रकार है :
१- श्री अरबिंदो : मेरी दृष्टि में
२- पंडित नेहरु और अन्य महापुरुष
३- स्मरानांजलि
४- खगेन्द्र ठाकुर द्वारा लिखित : "रामधारी सिंह दिनकर :: व्यक्तित्व और कृतित्व "
राष्ट्रीयता और ओज के कवि दिनकर जी ने २४ अप्रैल १९७४ को अपना देह त्याग दिया परन्तु उनकी रचनायें चिरकाल तक हमें ज्ञान बांचती रहेंगी |

अपनी एक रचना उनको समर्पित करना चाहूँगा :

" तुम प्रेणना के अगार , निश्चल पावन निर्झर धार |
  लेखनी तुम्हारी जैसे कृपान , तुम माँ धरती के सच्चे लाल || "

Note - In coming blog , i will focus on his famous work in Hindi Literature.
सूचना : अगले अध्याय में दिनकर जी की प्रमुख रचनाओ पर विश्लेषण किया जायेगा |

--- कविराज तरुण

1 comment: