Wednesday 22 May 2013

उन्मुक्त विचारो का पंछी मै



उन्मुक्त विचारो का पंछी मै
 इस ओर चला , उस ओर चला |
 जो हवा मिली मध्धम मध्धम ...
 एक सांस भरी फिर पुरजोर चला ||

 निर्भय जीवन की पगडण्डी पर ...
 जाने कितने मौसम आये ...
 लपट आग सी गर्मी देखी...
 बारिश देखा सावन आये...
 तूफानों में उड़कर देखा ...
 पतझड़ में भी चलकर देखा...
 बिन पानी के खुद को मैंने ...
 धूप-थपेड़ो में जलकर देखा ...

 और अपने अरमानो के दम पर
 मै सांझ चला मै भोर चला |
 उन्मुक्त विचारो का पंछी मै
 इस ओर चला , उस ओर चला ||
 
   --- कविराज तरुण

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