व्याकुल अभ्यंतर
जो भाव असीमित उमड़ रहे थे
इस मन - मंदिर के अन्दर |
एक आंधी आकर चली गयी
बस रह गया व्याकुल अभ्यंतर ||
सकारात्मक सोच भी कबतक
देगी अहसासों को जीवन की घूटी ...
पतवार चलकर क्या होगा जब
हो किस्मत की नैया टूटी ...
सब कहते हैं हिम्मत न हारो
घर देर है उसके अंधेर नहीं ...
मै कहता हूँ ये जीवन है मेरा
कोई गुड्डे - गुडिया का खेल नहीं ...
वक़्त की ख़त्म हो रही
न मर्ज मिला न मंतर |
भव बाधा में उलझा " तरुण "
कैसे पार करेगा समंदर ||
जो भाव असीमित उमड़ रहे थे
इस मन - मंदिर के अन्दर |
एक आंधी आकर चली गयी
बस रह गया व्याकुल अभ्यंतर ||
--- कविराज तरुण
इस मन - मंदिर के अन्दर |
एक आंधी आकर चली गयी
बस रह गया व्याकुल अभ्यंतर ||
सकारात्मक सोच भी कबतक
देगी अहसासों को जीवन की घूटी ...
पतवार चलकर क्या होगा जब
हो किस्मत की नैया टूटी ...
सब कहते हैं हिम्मत न हारो
घर देर है उसके अंधेर नहीं ...
मै कहता हूँ ये जीवन है मेरा
कोई गुड्डे - गुडिया का खेल नहीं ...
वक़्त की ख़त्म हो रही
न मर्ज मिला न मंतर |
भव बाधा में उलझा " तरुण "
कैसे पार करेगा समंदर ||
जो भाव असीमित उमड़ रहे थे
इस मन - मंदिर के अन्दर |
एक आंधी आकर चली गयी
बस रह गया व्याकुल अभ्यंतर ||
--- कविराज तरुण
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