Saturday 29 June 2013

dard bhari ek ghazal


सिर्फ एक ज़ख्म नहीं दिल में कुछ दरार भी है...
जवाब दूंढते हुए मन में कुछ सवाल भी हैं...
तू साथ दे न सकी मै साथ ले न सका
आरज़ू आज भी हैं वो ख्वाब आज भी हैं
झूमते साज सी थी तेरी हर बात सनम
आज भी गूंजती है तेरी आवाज़ सनम
मै सुन के सुन न सका तू कह के कह न सकी
वादे इतने किये पर टिकी रह न सकी
इन्ही वादों की कसक में छुपा प्यार भी है |
सिर्फ एक ज़ख्म नहीं दिल में कुछ दरार भी है ||
मै शाम मय से बात ये करता रहा
साथ जब उसका गया तो तू साथ चलता गया
न सोच तू ही उसे न मुझे सोचने दे
नशे में आज मुझे जी भर के डूबने दे
तुही सफ़र है मेरा तुही सवार भी है |
सिर्फ एक ज़ख्म नहीं दिल में कुछ दरार भी है ||
संग तेरे सोचा था हम घर बसायेंगे
तू तो अब दूर गयी हम कहाँ जायेंगे
रूठे हालात हमें हर घड़ी रोकते हैं
रूखे ज़ज्बात हमें हर घड़ी कोसते हैं
भूल जाता मै तुझे मगर ये हो न सका
वफ़ा में लिपटा हुआ बाकी बचा करार भी है |
सिर्फ एक ज़ख्म नहीं दिल में कुछ दरार भी है ||
जवाब दूंढते हुए मन में कुछ सवाल भी हैं ||

--- कविराज तरुण     

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