Friday, 14 March 2014

अहसासों के मोती

अहसासो के मोती चुनकर,
रिश्तों की एक डोर बनाई ।
तेरे माथे का श्रृंगार किया तब,
प्रेमसुधा ने अमृत पाई ।।
स्वतः अखंडित प्यार हमारा ...
स्वतः उज्जवलित संसार हमारा ...
सूरज का प्रतिमान बना जब ,
तेरे चक्षु-किरण से दृष्टि लगाई ।।
कदम कदम का साथ हमारा ...
पल पल का विश्वास हमारा ...
दिशाविहीन पथहीन था अबतक ,
तुम जो साथ चली तो गति पाई ।।
अन्तः की अनसुलझी बातें ...
वृहत समाज की सब सौगातें ...
शांत हुई स्पष्ट हुई सब ,
तुमसे मिलकर जब सुधि पाई ।।
व्यथा के कितने गीत लिखे हैं ...
आंसू पर संगीत लिखे हैं ...
पर प्यार की कुमकुम झलक गई जब ,
तुम आकर इस जीवन मे मुस्काई ।।

--- कविराज तरुण

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