Wednesday 18 March 2015

तनहा रहा अकेला रहा

कल तक उनके दिलों का मेला रहा ।
आज तनहा रहा , अकेला रहा ।
बात कम हो गई , रात नम हो गई ।
होते होते मुलाक़ात खतम हो गई ।
मेरे सपने ही मुझसे जुदा हो गए ।
उनको खबर ही नही वो खुदा हो गए।
रूठ कर , टूट कर चल रहा हूँ अभी ।
थाम ले वो मुझे शायद आकर कभी ।
कलतक उनके बगीचे का फूल बेला रहा ।
आज तनहा रहा , अकेला रहा ।

कविराज तरुण

No comments:

Post a Comment