Monday 22 June 2015

है तो है

तुम हो किसी और की ज़माने भर की नज़रों में ।
मगर फिरभी तुम्हे पाने की चाहत है ... तो है ।
कोई रोके भी कितना धड़कनो को उनपर बहकने से ।
जो इस दिल में बेकरारी सी ये उल्फ़त है ... तो है ।
कहते हैं नही हासिल हुआ कुछ भी परवाने को ।
मगर फिर भी उसे शमा में जल जाने की हसरत है ... तो है ।
ज़मीं और क्षितिज मिल नही सकते ये सच है ।
मगर एक दुसरे से उनको मोहब्बत है ... तो है ।
रात भर देखता रहा चाँद को चकोर ।
मिलन मुमकिन नही है गर ये हकीक़त है ... तो है ।
ख़ुदा हो जाए बेशक हमसे खफ़ा कितना ।
तू मेरी मन के मंदिर की इबादत है ... तो है ।

कविराज तरुण

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