Monday 1 June 2015

कशिश

अब्र आँखों से गिरा देते हैं
यादों में तेरी ।
शहद सा स्वाद लगे मुझको बातों में तेरी ।
हर घड़ी गिन गिन के गुजारी तेरे इंतज़ार में ।
रूमानी असर आज भी बाकी है तेरे प्यार में ।
कशिश बाकी है ऐसी कि कोई और भाता ही नही ।
कोई भी आये तेरे करीब तो सहा जाता हो नही ।
झूठ बोलकर मुझसे तू फरेब मत कर ...
झूठ कितना भी मीठा हो सुना जाता ही नही ।
तू है चंचल तेरी हँसी क़यामत है ।
तेरी खुशियाँ मेरे प्यार की अमानत हैं ।
बिना देखे तुझे पलभर भी रहा जाता ही नही ।
तेरे सिवा इन ख्वाबो में कोई और आता ही नही ।

कविराज तरुण

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