मै पतंग केशरिया बालम ,
तू माँझे की डोर ।
जितना चाहे खींच ले मुझको ,
मै तेरे मन की ओर ।
आसमाँ की बुलंदी तक उड़ा दे ...
या अर्श पर लाकर मुझको गिरा दे ...
मेरी किस्मत मै ना जानू तू बता दे ...
जो खटकता आँख में उससे लड़ा दे ...
बच गया तो साथ तेरा ,
पा सकूँगा और ।
कट गया तो क्या पता,
जाऊँगा किस ठौर ।
मै पतंग केशरिया बालम , तू माँझे की डोर ।।
जितना चाहे खींच ले मुझको , मै तेरे मन की ओर ।।
हो सकता पास तुम्हारे वापस मै आ जाऊँ ...
गाँठ लगाकर माँझे मे तुमसे जोड़ा मै जाऊँ ...
पर क्या जाने किस झटके से खुल जाएगी ये गाँठ ...
वापस मुझको पाने की तू कबतक जोहेगी बाट ...
किसी दूजी पतंग से मिल जायेगा ,
तेरे माँझे का फिर छोर ।
मै लुटा फटा या लटक गया ,
तू कहाँ करेगी गौर ।
मै पतंग केशरिया बालम , तू माँझे की डोर ।।
जितना चाहे खींच ले मुझको , मै तेरे मन की ओर ।।
कविराज तरुण
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