अपने ख्वाबो में एक ख्वाब जोड़ता गया ।
उनके सवालों के जवाब जोड़ता गया ।
मेरा प्यार बेहिसाब था ...
वो हिसाब जोड़ता गया ||
थी रंजिशें बेवज़ह
प्यार का खुमार था ।
वो देखकर न देख पाये
नज़र नज़र मे प्यार था ।
साथ मेरे जो भी पल था
तेरा साथ बेशुमार था ।
वज़ह तलाशता रहा
वो कौनसा गुबार था ।
दिल के लफ़्ज़ों में लिखी मै किताब जोड़ता गया ।
अँधेरे से सिमटी रात मे आफताब जोड़ता गया ।
मेरा प्यार बेहिसाब था ...
वो हिसाब जोड़ता गया ||
कविराज तरुण
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