*विषय - कलम के सिपाही*
सरेआम जब चौराहे पर सच ये बिकने लगता है
झूठ का ऐसा वार चले कि सच ये छुपने लगता है
माया के मंतर से ढोंगी गठरी अपनी भरते हैं
लालच तृष्णा चालाकी से मीठी बातें करते हैं
*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*
चीरहरण होता है खुलकर जब इस बीच दुपहरी में
कलियां कुचली जाती हैं सामाजिक इस नगरी में
जब नारी की अस्मत पर नजरें ये मंडराती है
इन रश्मों के डर से जब ये सिसकी चुप हो जाती है
*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*
रावण को जब रामराज का मालिक कहना पड़ता है
दुश्मन की हर साजिश को जबरन सहना पड़ता है
सत्ता के रखवालों से जब लोकतंत्र हिल जाता है
मान धरम सब बेच के नेता गठबंधन करवाता है
*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*
सरहद पर आतंक का नंगा नाच दिखाई देता है
जब एक सैनिक की विधवा का कष्ट सुनाई देता है
सन्नाटों में विरह वेदना तब आवाज लगाती है
सपनों के खंडित होने की चिंता खूब सताती है
*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*
कविराज तरुण
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