घोर कुहासों में छुपकर
जीवन के मरुस्थल में
कहाँ चले हो पथिक अकेले
रुको तनिक विश्राम करो
सत्य प्रकाशित कहाँ स्वार्थ से
वैभव के इस दलदल में
भाव अकिंचन व्यथा अनगिनत
कुछ पल को तो संग्राम करो
जिजीविषा अगर न मन मे
कर्म सिद्ध कैसे जीवन मे
पत्थर के भीतर अंकुर हो
ऐसा कुछ तो काम करो
चाँद चकोरे की अभिलाषा
मौन प्रेम की अतुलित भाषा
विश्वास यदि है मधुर मिलन का
मन के भीतर शाम करो
कविराज तरुण
No comments:
Post a Comment