माँ
तेरी लोरी जब भी याद आती है माँ
एक ठंडक आँखों मे उतर जाती है माँ
भूल जाता हूँ परेशानियां रंजोगम इस जमाने का
इसतरह तू नींद मे सुलाती है माँ
गोल चपाती में आज भी तेरी सूरत मुझे नजर आती है
हल्की आँच पर उबलती सब्जियाँ
तेरे होने का अहसास दिलाती हैं
जब फालतू में जलता बल्ब कमरे में छूट जाता है
तो तेरी डाँट मुझे सुनाई देती है
दरवाजा खुला है मच्छर आ जायेंगे
ये चिंता अब मुझे रोज रहती है
माँ आज भी जब कभी मै भूखा सोता हूँ
तू सपनों में आकर बहुत गुस्साती है माँ
तेरी लोरी जब भी याद आती है माँ
एक ठंडक आँखों मे उतर जाती है माँ
भूल जाता हूँ परेशानियां रंजोगम इस जमाने का
इसतरह तू नींद मे सुलाती है माँ
कविराज तरुण
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