Monday, 30 June 2025

हो नहीं सकता

देर तक मुझसे ख़फ़ा वो हो नहीं सकता
थी ग़लतफ़हमी मुझे, मैं रो नहीं सकता

फिर बिछड़ने के मुझे अब ख्वाब आएंगे
चार दिन से जग रहा, पर सो नहीं सकता

उसके लहजे में जो छलका था वो पत्थर था
अब किसी उम्मीद पर भी ढो नहीं सकता

आँख नम है पर कोई आँसू नहीं गिरता
दर्द ऐसा है जिसे मैं धो नहीं सकता

जिसके जाने से 'तरुण' वीरान है दुनिया 
था यकीं उसको कभी मै खो नहीं सकता

बदलते हैं

मुश्किलों में हम सफर थोड़ी बदलते हैं 
राह जैसी हो डगर थोड़ी बदलते हैँ

जिनको अपने लोग की परवाह रहती है 
वो परिंदे अपना घर थोड़ी बदलते हैँ

धूप में भी पालते परिवार वो अपना 
देखकर मौसम शहर थोड़ी बदलते हैँ 

जिसकी जो आदत रही वो हो गया वैसा 
सांप कुछ भी हो जहर थोड़ी बदलते हैं

डाल अपनी टहनियों पर फूल आने से
झूम लेते हैं शज़र थोड़ी बदलते हैं

इस बदलते वक़्त में जो लोग जिंदा हैँ 
वो ज़रा सी बात पर थोड़ी बदलते हैँ 

जिसके सर पर हाथ हो बूढ़े बुजुर्गो का
वो कभी अपना हुनर थोड़ी बदलते हैँ 

वो बड़ा मशहूर था जिसने कहा था  ये 
जो खबर खुद हों खबर थोड़ी बदलते हैँ

जब बुलंदी पर किसी के पैर काबिज हों 
तब वहां जाकर नजर थोड़ी बदलते हैँ

Sunday, 22 June 2025

कैसे हैं आप

पाप अत्याचार सबकुछ सामने, कैसे हैं आप
लोग पीड़ित हो गए हैं आपसे, कैसे हैं आप

बाहुबल से जंग तो जीती नही जाती जनाब
बात करने से निकलते रास्ते, कैसे हैं आप

चार पैसे के लिए कितना सुनूं, कबतक सुनूं मै
सर है गर्दन पर हमारे, सोचिये, कैसे हैं आप

झूठ के बिस्तर पे सोने से नहीं आती है नींद
आप हैं जो ख्वाब बोना चाहते, कैसे हैं आप

काम मुश्किल था नही पर, ये तरीका आप का
इक दफा कहते तरुण को प्यार से, कैसे हैं आप

कविराज तरुण