थी ग़लतफ़हमी मुझे, मैं रो नहीं सकता
फिर बिछड़ने के मुझे अब ख्वाब आएंगे
चार दिन से जग रहा, पर सो नहीं सकता
उसके लहजे में जो छलका था वो पत्थर था
अब किसी उम्मीद पर भी ढो नहीं सकता
आँख नम है पर कोई आँसू नहीं गिरता
दर्द ऐसा है जिसे मैं धो नहीं सकता
जिसके जाने से 'तरुण' वीरान है दुनिया
था यकीं उसको कभी मै खो नहीं सकता
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