Tuesday 27 August 2013

आवाज़ उठेगी ( WAKE UP )


चाहे दुष्कर्म की शिकार हुई बालिकाओं के परिजन हों या फिर सीमा पर शहीद हुए जवानों के परिवार ...  सत्तापक्ष के झूठे आश्वासन और विपक्ष के सियासती आंसू से सब क्षुब्द हैं |
माननीय अटल जी ने कहा था - राजनीति में विचारों का स्वागत है , परन्तु विचारो में राजनीति देशहित में कदापि नहीं |
आज वैचारिक राजनीति का राजनैतिक विचारों में इस भांति प्रवेश वाकई चिंता का विषय है | प्रस्तुत है एक रचना :

जब जख्म कुरेदे जाते हैं , बातों से हथियारों से |
माँ सीना छलनी हो जाता है , नेता के इक - इक नारों से ||
आसान नहीं जी के मरना , आसान नहीं मर के जीना |
पर अंतर कौन बता पाए , इन सत्ता के रखवालों से ||
झूठे वादे झूठे आंसू , बह जाते हैं इनके कोषों से |
अपनी सत्ता की मंशा ये , पूरी करते हम निर्दोषों से ||
सीमा पर स्वास शहादत की , विषय - वस्तु है संसद की |
कुर्सी के लोभी ये क्या जाने , क्या होती कीमत अस्मत की ||
न जाने कितने विषम रूप , नित निकलेंगे इनके आगारो से |
समय है अभी दमन कर दो , इनको वोटो के अधिकारों से ||
आवाज़ उठेगी बस्ती से , आवाज़ उठेगी गलियारों से |
पाई पाई की सुध लेंगे हम , इन जनता के गद्दारों से ||
जब जख्म कुरेदे जाते हैं , बातों से हथियारों से |
माँ सीना छलनी हो जाता है , नेता के इक - इक नारों से ||

--- कविराज तरुण 


No comments:

Post a Comment