Friday, 4 December 2015

दर्द की शायरी

उम्र दो चार दिन की मोहलत मुझे दे दे ,
अभी कुछ आँसुओं का क़र्ज़ मुझको चुकाना है ।

इस मुशगुली मे वक़्त कुछ कम ही रहा ,
अपनों को हँसाना है ग़ैरों को रुलाना है ।

नही तेरे सितम का कोई भी शानी नज़र आया ।
ये कतरा आँख मे भरकर समंदर को हराना है ।

मेरे हमदर्द कहते हैं ज़ख्म भर जायेगा सब मेरा ,
इश्क़ में बेवफाई का चलन सदियों पुराना है ।

कविराज तरुण

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