Saturday, 12 December 2015

दहेज़

दुनिया भी गज़ब का बाज़ार है ।
यहाँ हर कोई बिकने को तैयार है ।
जो खरीद नही सकते स्कूटर भी जेब से ...
अपने लड़के के लिए दहेज़ में उन्होंने मांगी कार है ।
दुनिया भी गज़ब का बाज़ार है ।
अपनी इसी किस्मत को रोती हैं बेटियाँ ...
उनका दहेज़ जमा करने के लिए बाप ने छोड़ी है रोटियाँ ...
माँ ने भी सपनो से कबसे किया है किनारा ...
बेटी की शादी के लिए अपना गहना उतारा ...
और भाई भी धन जुटाने में कितना लाचार है ।
ये दुनिया भी गज़ब का बाज़ार है ।
ये प्रलोभन है या लालच या मन की तृष्णा ...
रुक्मणी को बिना दहेज़ नही मिलेगा कृष्णा ...
दूषित समाज मे आज कितना दूषित विचार है ।
दहेजलोभी है जो वो सच मे बीमार है ।
दुनिया भी गज़ब का बाज़ार है ।

कविराज तरुण

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