उनको चाहा तो जाना खुदा क्या है ।
और वो कहते हैं तुझको हुआ क्या है ।।
ज़र्रे ज़र्रे मे खनक उनके पायल की
ज़ुल्फ़ जैसे झलक हो बादल की
फूल के खिलते यौवन सी उनकी हँसी
दिल का बहकना हो गया लाज़िमी
उनकी खुशियों ने सिखाया दुआ क्या है ।
और वो कहते हैं तुझको हुआ क्या है ।।
बंद पलकों मे काजल छिपा लेने वाले
अपने होंठो से कभी कुछ न कहने वाले
जान के अंजान बनते हो फिदरत तुम्हारी
हूँ ख़्यालो मे गुम है ये सीरत हमारी
अब्र सा ऐहसास है हमने छुआ क्या है ।
और वो कहते हैं तुझको हुआ क्या है ।।
कविराज तरुण
No comments:
Post a Comment