मैंने देखा है माँ की आँखों में
तस्वीर-ए-हयात को ।
वो जगती है हमें सुलाकर
इस काली रात को ।।
खुद से ही बनाती है , मेरे ख़्वाबों का शहर ।
अपनी कुछ खबर ही नही , रहती वो बेखबर ।।
ढक लेती है अपने आँचल से , वो हर रश्मो-रिवाज़ को ।
मेरे उस कल के लिए , कुर्बान करती वो अपने आज को ।।
जतन से सही करती है पूरी
मेरी हरेक बात को ।
मैंने देखा है माँ की आँखों में
तस्वीर-ए-हयात को ।
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