Wednesday, 15 February 2017

माँ की तस्वीर

मैंने देखा है माँ की आँखों में
    तस्वीर-ए-हयात को ।
वो जगती है हमें सुलाकर
    इस काली रात को ।।

खुद से ही बनाती है , मेरे ख़्वाबों का शहर ।
अपनी कुछ खबर ही नही , रहती वो बेखबर ।।

ढक लेती है अपने आँचल से , वो हर रश्मो-रिवाज़ को ।
मेरे उस कल के लिए , कुर्बान करती वो अपने आज को ।।

जतन से सही करती है पूरी
   मेरी हरेक बात को ।
मैंने देखा है माँ की आँखों में
    तस्वीर-ए-हयात को ।

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