Friday 27 January 2017

ग़ज़ल 2122x4 हो गयी हो

बहर 2122 2122 2122 2122 पर प्रथम प्रयास
रदीफ़ - हो गयी हो
काफ़िया- आरी

हम हुए हैं आपके औ तुम हमारी हो गई हो ।
आँधियों के बाद वाली रात प्यारी हो गयी हो ।।

चंद लफ़्ज़ों में बनाया आपको अपना ख़ुदा है ।
फ़ासलों को तोड़ के मेरी दुलारी हो गयी हो ।।

कश्तियों को ही पता है मौज क्या है साहिलों की ।
मंजिलों की चाह में अब तुम खुमारी हो गयी हो ।।

आशियाँ ये प्यार का मेरे दिली व्यापार का है ।
पान से लिपटी हुयी भींगी सुपारी हो गयी हो ।।

चाहतों की रेख से तुमको बनाया शौख से है ।
जीवनी मेरे लिये एक चित्रकारी हो गयी हो ।।

कविराज तरुण सक्षम

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