Sunday 19 March 2017

शहरे लखनऊ

ये शहरे लखनऊ है
ज़रा एहतराम करिये
बाहों में इसको भरके
खुशियां तमाम करिये

हिंदी से ये बना है
उर्दू मे ये खिला है
लफ्ज़ो में है सलीखा
यहाँ प्यार सिलसिला है

आके ज़रा यहाँ पर
मदहोश शाम करिये
ये शहरे लखनऊ है
ज़रा एहतराम करिये

बोली है अवधी मीठी
लब पर बसा है 'भईया'
आँखों में इसकी खोजो
भूला हुआ भुलईया

मुख़्तार है हुसन का
'हज़रत महल' नज़ारा
गोमती के तट पर
प्रेमी युगल किनारा

'उमराव' की है महफ़िल
झुककर सलाम करिये
ये शहरे लखनऊ है
ज़रा एहतराम करिये

अंदाजे हो बयां या
अल्फ़ाजे गुफ्तगू हो
अहदे अदब की ख़्वाहिश
चैनो-अमन की आरजू हो

शामें रूहानी 'गंजिंग'
सुबहे रूमानी कर लो
नवाबी शहर मे तुमभी
ज़रा ताज-पोशी कर लो

रंगीन है शहर ये
कुछ इंतजाम करिये
ये शहरे लखनऊ है
ज़रा एहतराम करिये

कविराज तरुण

No comments:

Post a Comment