*🙏🏼--० शुभ नमन ०--🙏🏼*
मिले हालात जैसे भी ,
कटे ये रात कैसे भी ।
चलो हम भी जरा समझें ,
मोहब्बत राज वैसे भी ।।
सुबह की रौशनी के संग
लिखें हम गीत मन भावन ।
तुम्हारे प्यार की गीता ,
करे फिर आज अब पावन ।।
कभी काली सियाही सी ,
कभी कड़वी दवाई सी ।
मिली थी रात बातों को ,
बिना उसके गँवाई सी ।।
मगर अब चाँद भी गायब ,
छटा सूरज लिये अनुपम ।
उजाला ही बिखेरे अब ,
सुबह इस भोर की सरगम ।।
बड़ा गुमसुम नज़ारा था ,
अँधेरे का पिटारा था ।
कहीं इक लौ दिखी जुगनूं,
वही अपना सहारा था ।।
सुबह आई मिटी स्याही,
करी आशाओं ने थिरकन ।
कदम उठने लगे मेरे ,
और खुलने लगे बंधन ।।
घना काला अँधेरा था
बादलों का भी पहरा था
वो अपने आसमा में गुम
जमीं पर मै अकेला था
हुआ जब दिन किरण आई
मिला एक दर्द को जीवन
चिड़िया भी हमारे द्वार पर
मधुर करने लगी चहकन
उनींदी थी पलक मेरी
उठाकर बोझ सावन का
अमावस द्वार पर बैठा
जिया में लोभ साजन का
रवि कर-कुञ्ज लेके पुंज
आया और दिखा चिलबन
जवानी के दिये चुप हैं
मगर है आस मन ही मन
धुआँ काजल सरीखी थी
यही जो रात बीती थी
नहीं पहचान थी उसकी
हमें जो घात देती थी
उजाले के कुबेरों में
उकेरा जो कुटिल दर्पण
हुआ मै रूबरू सच से
सनम ये प्यार है बंधन
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
*साहित्य संगम संस्थान*
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