Monday, 27 March 2017

ग़ज़ल- कर रहा हूँ

रदीफ़ - कर रहा हूँ
काफ़िया - अन
बहर 122 122 122 122

उजाला रहे ये जतन कर रहा हूँ ।
सवेरे सवेरे हवन कर रहा हूँ ।।

मुख़ातिब अ-धेरा ब-सेरा मुनासिब ।
यही सोच खुद को दफन कर रहा हूँ ।।

रिवाज़ो ज़रा लाँघने दो जजीरा ।
जलाकर जवानी तपन कर रहा हूँ ।।

बड़ी दूर जाना घने काम करने ।
मशालों से रौशन चमन कर रहा हूँ ।।

तरुण छोड़ दो अब ख-यालो मे' रहना ।
जमी पर सितारा चलन कर रहा हूँ ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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