Tuesday 16 May 2017

पिता

*पिता*

निष्ठा की अद्भुत पहचान होता है
घर के लिए वो ही भगवान होता है

काकर पाथर जोड़कर आशियां बनाता है
हर जरुरत पर वही बस याद आता है
होते हैं ये विद्यालय जमाने के लिए
हमारे लिए तो वो ही संस्थान होता है
घर के लिए वो भगवान होता है

बनता है छतरी बारिश की बूंदों में
बन जाता है दीवार तूफ़ान आने पर
अकेले अपने दम पर झेल लेता मुसीबत
परिवार अक्सर आफत से अंजान होता है
घर के लिए वो भगवान होता है

सख्त रहता है बाहर से पर अंदर से मोम
वो निगाहों से कहता है पर दिखता है मौन
बेटी की विदाई में उसका दर्द जान पाया कौन
पानी के छींटों मे आँसू छुपाकर रोता है
घर के लिए वो भगवान होता है

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

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