ग़ज़ल
वो मिले और फिर दिल भी मिलने लगा
खामखाँ बारबां उनपे मरने लगा
हाल बेहाल सा चाल मदहोश सी
इक नशा सा मुझे आज चढ़ने लगा
इश्क़ है ख़्वाब है बात है या नही
हाँ इसी सोच मे दिन गुजरने लगा
वो जहाँ वो जिधर पाँव रखते चले
मै गली वो पकड़ के ही चलने लगा
बस तेरी ही ख़बर बस तेरी ही फिकर
मै मुसाफ़िर हुआ और भटकने लगा
काश वो देख लें प्यार से ऐ 'तरुण'
मै सुबह जब उठा तो सँवरने लगा
कविराज तरुण
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