कुंडलियां
माखन देखो खा रहे , मेरे नंदकिशोर । फूटी है सब गागरी , बैठे माखनचोर ।। बैठे माखनचोर, मनोहर मुख लिपटाया। सुंदर शोभित श्याम, सलोनी सुंदर काया ।। कहे तरुण कविराज,किसी को मत दो चाखन । खाओ मन भर आज , श्याम मटकी का माखन ।।
कविराज तरुण
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