ग़ज़ल - बेहतर है
ये चिराग मेरी आँखों का नूर हो तो बेहतर है
रंज-ओ-गम तेरे चहरे से दूर हो तो बेहतर है
ये उदासी परेशानियां तुझपर ज़रा भी नही जँचती
तेरी अदाओं में फिर वही गुरूर हो तो बेहतर है
मै नही चाहता कि तुझे इश्क़ का नशा हो
पर थोड़ा बहुत इश्क़ का शुरूर हो तो बेहतर है
जब तुम नही दिखती तो दर्द होता है मुझे
इल्म इस बात का तुझे जरूर हो तो बेहतर है
मुहब्बत का मजा ऐशो-आराम में नही है
इस उल्फत में बदन थक के चूर हो तो बेहतर है
कविराज तरुण
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