सोचता हूँ कुछ हाल-ए-दिल सुनाया जाये
हौले हौले ही सही इन पर्दों को उठाया जाये
ये सफर जिंदगी का तब बेहतर हो जायेगा
रूठे चेहरों को जब फिर से मनाया जाये
जहाँ दरबार लगा हो उल्फ़त के मारों का
बहुत जरूरी है वहाँ हमको बुलाया जाये
ये मेरा शौक ही शायद मेरी अदावत है
ख़्वाहिश-ए-दिल कि गुल नया खिलाया जाये
लोग हँसते हैं तो बिल्कुल बुरा नही लगता
बस यही कोशिश कि जम के हँसाया जाये
कविराज तरुण
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