ग़ज़ल
तुम हमारे लिए हम तुम्हारे लिए
चाँद जैसे फलक पर सितारे लिए
अश्क़ का मोल क्या उसकी कीमत है क्या
मै छलकता रहा अश्क़ सारे लिए
इसतरह हो रही है हवा गर्द सी
फूल मुरझा रहे अब्र खारे लिए
आ गए आज खुद वो मेरे सामने
लग रहा रेत आई किनारे लिए
बंदिगी में खुदा की मजा आ गया
बन गए जब खुदा तुम हमारे लिए
कविराज तरुण
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