Monday, 23 December 2019

ग़ज़ल - बिगड़े हुए हालात

बिगड़े हुए हालात में खुद को बचाईये
बेशर्म होके यूँ नही पत्थर चलाईये

जिसको लगी है चोट वो वर्दी में कौन था
ऐसे नही घर का कोई दीपक बुझाईये

जो जल रहा वो देश है मेरा तुम्हारा भी
अफवाह की इस आग से घर ना जलाईये

इंसानियत है चीज क्या हैवान कौन है
ये आँख पर जो है पड़ा पर्दा हटाईये

जो कर सको तो चैन की बातें तमाम हैं
इस बेतुकी सी बात को अब ना बढाईये

कविराज तरुण

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